श्वास में ,प्रश्वास में तुम हो
आस में विश्वास में तुम हो
अश्रु में या हास में तुम हो
दो दृगों की प्यास में तुम हो ।
उत्साह का स्फुरण हो
सम्पूर्णता का वरण हो
अन्तर के स्वर्णाभरण हो
आराध्य हित जागरण हो ।
वेदना तुम हो, तरल संवेदना तुम हो
देह संज्ञाहीन मैं हूँ ,चेतना तुम हो ।
चुभ रहे हों शूल
या फिर खिल रहे हों फूल
तुम बसे हर भाव
पश्चाताप हो या भूल ।
दृष्टि में तुम हो
चिरंतन सृष्टि में तुम हो
तप रही हो जब धरा
घन वृष्टि में तुम हो ।
जीत में हो तुम
हदय की हार में भी तुम
उलाहनों में भी ,
मधुर मनुहार में भी तुम ।
विश्व में तुम हो
अखिल अस्तित्व में तुम हो ।
कोई भी देखले चाहे
हृदय के स्वत्व में तुम हो ।
दर्द में हो तुम
कि मीठी राहतों में तुम
धडकनें जिनसे बढें
उन आहटों में तुम ।
याद में भी हो
मधुर संवाद में भी हो
जटिल नीरस निबन्धों के
सरस अनुवाद में भी हो ।
सभी हालात में तुम हो
सभी जज़बात में तुम हो
नही हूँ मैं कहीं कुछ भी
मेरी हर बात में तुम हो ।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 14-02 -2013 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं....
आज की नयी पुरानी हलचल में ..... मर जाना , पर इश्क़ ज़रूर करना ...
संगीता स्वरूप
.
चेतना तुम हो ...
जवाब देंहटाएंवाह...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोग्स संकलक (ब्लॉग कलश) पर आपका स्वागत है,आपका परामर्श चाहिए.
"ब्लॉग कलश"
वही वही तो है सब ओर...सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंhar jagah bas vahi hai aur usase hi har cheej ka astitva hai.
जवाब देंहटाएंयाद में भी हो
जवाब देंहटाएंमधुर संवाद में भी हो ...
...
नि:शब्द करते भाव रचना के
सादर आभार
न ढूढ़ूँ, तुम चहुँ ओर हो,
जवाब देंहटाएंढूढ़ूँ, तुम छिपे किधर हो
हर जगह तुम हो....
जवाब देंहटाएंऔर कहाँ कहाँ नहीं खोजा किये हम...उम्र गुज़ार दी सारी....
सादर
अनु
सर्वव्यापी है वो.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर वर्णन ..!
~सादर!!!
बहुत ही सुन्दर रचना ............
जवाब देंहटाएंइश्क़ की दास्ताँ है प्यारे ... अपनी अपनी जुबां है प्यारे - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंउस सर्वशक्तिमान को नमन ...... अद्भुत भाव लिए हैं आपकी पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंअपने पे सितम गैरों पे करम ...
जवाब देंहटाएंवाह ..
बधाई एक मुक्त रचना के लिए
प्रेम ईश्वर का सत्य रूप है ....
जवाब देंहटाएंजहां प्रेम नहीं ईश्वर भी नहीं ....
एक सशक्त कविता ...!!
Bahut badhiya,,
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