ठूँठे से दिन-रात होगए ।
झूठे से जज़बात होगए ।
अरमां पंख--विहीन पडे हैं
सपने पतझर पात होगए ।
जब सब था स्वीकार तुम्हें,
हर मुश्किल आसां थी ।
अब हर रोडा पर्वत सा,
हर राह बियाबां सी ।
अन्तहीन सी बाट रही
और कितने-कितने घात होगए ।
सपने पतझर पात होगए ।
जिनको पढकर भोर
महकने लगती थी आँगन ।
शाम सुनहरे शिलालेख
लिखती कोरे से मन ।
जीवन के वे गीत पत्र
अब तो सपनों की बात होगए ।
सपने पतझर पात होगए ।
एक नदी उतरी थी
कहाँ हुई गुम ,नही पता ।
सजा सुनादी सूरज ने भी
समझे बिना खता ।
सन्नाटे का शोर मचा है
कैसे ये हालात होगए ।
सपने पतझर पात होगए
कुछ न रहने से, कुछ न कुछ रहने के भाव में ही जाना होता है..
जवाब देंहटाएंअच्छे गीत में कुछ शब्द खटक रहे हैं। जैसे और..अब तो..मैने तो बिना इसके गाया और अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंअरमां पंख विहीन पड़े हैं ...
जवाब देंहटाएंशायद यही जीवन है !!
उदासी भरा सुंदर गीत..
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