उम्र के चमकते दिन में माँ प्यारी ,पूजनीया ,अतुलनीया और न जाने क्या- क्या होती है लेकिन सूरज के ढलते ही माँ बोझ बन जाती है । उसके काँपते हाथ-पाँव रास्ते का अवरोध प्रतीत होते हैं । उसकी झुर्रियाँ सौन्दर्य-बोध के स्वाद को बिगाड देतीं हैं । उसके लिये घर बहुत छोटा पड जाता है ।यह दुनिया का एक कडवा यथार्थ है, एक निन्दनीय, वीभत्स यथार्थ । यह कविता, ऐसी ही हर माँ को समर्पित है जो मैंने एक माँ को ही लक्ष्य कर सन् 1997 में लिखी थी ।
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साँझ ढले
पिछवाडे जुगनू सी
जलती है माँ ।
वक्त पडे हर साँचे में
हँस कर ढलती है माँ ।
कितने बच्चे
उसने पाले-पोसे बडे किये
पर बच्चों को
एक अकेली ही खलती है माँ ।
रखती सबसे दबा-छुपाकर
फटा हुआ आँचल ।
कहीं अकेले में
चुपचाप उसे सिलती है माँ ।
बच्चे ही तो हैं ,
समझेंगे आज नही तो कल ।
सबको समझाती है
या खुद को छलती है माँ ।
जलन तपन गर्मी की पाकर
सूख सहम जाती ।
मिले जरा भी नमी
दूब सी फिर खिलती है माँ ।
जेबें सिकुड हुई छोटी
रिश्ते होगए मँहगे ।
किन्तु अभीतक वैसी ही
सस्ती मिलती है माँ ।
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साँझ ढले
पिछवाडे जुगनू सी
जलती है माँ ।
वक्त पडे हर साँचे में
हँस कर ढलती है माँ ।
कितने बच्चे
उसने पाले-पोसे बडे किये
पर बच्चों को
एक अकेली ही खलती है माँ ।
रखती सबसे दबा-छुपाकर
फटा हुआ आँचल ।
कहीं अकेले में
चुपचाप उसे सिलती है माँ ।
बच्चे ही तो हैं ,
समझेंगे आज नही तो कल ।
सबको समझाती है
या खुद को छलती है माँ ।
जलन तपन गर्मी की पाकर
सूख सहम जाती ।
मिले जरा भी नमी
दूब सी फिर खिलती है माँ ।
जेबें सिकुड हुई छोटी
रिश्ते होगए मँहगे ।
किन्तु अभीतक वैसी ही
सस्ती मिलती है माँ ।
बहुत कोमल और हृदयस्पर्शी रचना....
जवाब देंहटाएंदुःख होता है ऐसी सच्चाइयों से रूबरू होकर....
काश कभी किसी माँ की आँख नम न हो.
सादर
अनु
इसे तो मैं आपकी आवाज में भी सुन चूका हूँ। बहुत ही खूबसूरत भाव लिए हुए है ये कविता
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन के माँ दिवस विशेषांक माँ संवेदना है - वन्दे-मातरम् - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंऐसी मां को नमन।
जवाब देंहटाएंएक कड़वा सच व्यक्त किया है आपने, उन बच्चों को समझना होगा जिन्हें अपनी कोख में ले घूमी है माँ।
जवाब देंहटाएंसाँझ ढले
जवाब देंहटाएंपिछवाडे जुगनू सी
जलती है माँ ।
वक्त पडे हर साँचे में
हँस कर ढलती है माँ ।
एक सच यह भी है ....
माँ बस माँ ही रहती है ... हर रूप इएन ढल जाती है ... हर रंग में उतर जाती है ... क्योंकि वो माँ है ...
जवाब देंहटाएंदीदी,
जवाब देंहटाएंबुजुर्गों के आशीर्वाद और हमारी परवरिश का परिणाम है कि हमने ऐसी माँ कभी देखी ही नहीं.. लेकिन समाज में कई माएं हैं ऐसी ही, जिन्हें देखकर तरस आता है... दिल को छूने वाली रचना हमेशा की तरह!!
बहुत-बहुत खूबसूरत भाव लिए, दिल को छू गयी... आँखों को नमी दे गयी... आपकी रचना...!
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
क्या कहूँ...सच में हृदयस्पर्शी कविता है...!!
जवाब देंहटाएंनम कर देने वाली रचना!
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