बुधवार, 8 मई 2013

मन पंछी सा क्यों नही है ?


मन जहाँ भी रमता है 
पौधे की तरह जमता है
कहीं भी किसी भी ज़मीं
मिले जरा सी भी धूप और नमी  
फैल जातीं हैं जडें गहरे तक
बिना पूछे ,बिना जाने
अपनी अस्थिरता या 
अप्रासंगिकता अनुमाने
अँकुरातीं हैं टहनियाँ, 
पत्ते, कलियाँ फूल ,
होती है यही भूल 
बार--बार 
बना लेता है घर-द्वार
बिना पूछे ,बिना जाने 
पौधा  नहीं जानता  
ज़मी अपनी है पराई है ,
नहीं मानता  ..
इसलिये फैला लेता है जड़ें .
नहीं जानता कि 
ज़मीन  भी  होती है अपनी पराई 
समझ ही नहीं  पाता कि 
पौधे भी बनते है अवरोध 
किसी  राह में . 
उखाड़  दिये जाते हैं  ..
जैसे खरपतवार 
होता है यही , बार-बार
पौधा उखड़ने से जमीन में 
जख्म सा बनता है 
बिखरती माटी का दर्द कौन सुनता है !
फिर भी तो....
छोड़ता नही है मन 
जमीन से जुड़ना किसी पौधे की तरह
जाने क्यों छोड़ कर अपनी जड़ता
नही उड़ता ,
मन किसी पंछी की तरह ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. फिर भी तो....
    छोडता नही है मन
    जमीन से जुडना किसी पेड की तरह
    जाने क्यों छोड कर अपनी जडता
    नही उडता ,
    मन किसी पंछी की तरह ।

    वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,

    RECENT POST: नूतनता और उर्वरा,

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  2. शायद मन को बंधन भाते हैं..मुक्ति से डरता है..

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  3. Aapki is rachna ne Harun Yahya ki is baat ki yaad dila di:

    “I always wonder why birds choose to stay in the same place when they can fly anywhere on the earth, then I ask myself the same question.”

    -Abhijit (Reflections

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  4. जड़ें लगती हैं तो फैलती ही हैं...तब उड़ने का क्या लाभ..

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  5. बिखरती माटी का दर्द कौन सुनता है!........अत्‍यन्‍त गूढ़ काव्‍यकृति।

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  6. तभी तो मन को बावला कहते हैं......
    अपनी मर्जी करता है...

    सुन्दर रचना

    सादर
    अनु

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  7. पिछले बीस सालों से यही सब हो रहा है मेरे साथ.. कहीं मन के बीच अपनी ज़मीं ढूँढते हैं और मोह का पौधा पनपता है.. बस उसे निर्मूल करने की कवायद शुरू हो जाती है.. अब हर पौधे कलम तो होते नहीं कि दूसरी जगह रोप दिए जाएँ.. कभी एक जगह से उखाड़े जाने का दर्द और कभी दूसरी क्यारी में न लग पाने का दर्द..
    मन की अपनी मजबूरियाँ हैं.. तभी गीता में भगवान कहते हैं कि तुम् मन की मर्जी को मेरी मर्जी समझो.. जिस दिन ऐसा सोच लिया, न विस्थापन का दुःख होगा, न जुड़ाव का मोह!!
    विलम्ब के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ..

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  8. ब्लॉग बुलेटिन की ५०० वीं पोस्ट ब्लॉग बुलेटिन की ५०० वीं पोस्ट पर नंगे पाँव मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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