यह मेरी एक बाल कहानी का शीर्षक है और पुस्तक का भी । यह पुस्तक अभी-अभी एकलव्य ( भोपाल ) से प्रकाशित हुई है । इसमें आठ कहानियाँ संकलित हैं । अपनी खिडकी से संग्रह की कहानियों की तरह इस संग्रह की भी लगभग सभी कहानियाँ पूर्व प्रकाशित हैं । कुछ चकमक में तो कुछ पाठकमंच (ने.बु.ट्र.) में । अपनी इन सारी कहानियों की रचना का मेरी कल्पना व रचनाशीलता से कहीं अधिक माननीय सम्पादक गण ,जिनके आग्रह पर कहानियाँ लिखी गईं व पाठकगण जिन्होंने मुझे उत्साहित किया, को जाता है । मैं उन सबकी आभारी हूँ । इस कहानी को आप यहाँ http://manya-vihaan.blogspot.in/ पढें
बहुत बढ़िया। बधाई स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंबधाई...
जवाब देंहटाएंपढ़ते हैं जाकर..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई इस पुस्तक प्रकाशा पर ...
जवाब देंहटाएंवाह....
जवाब देंहटाएंबधाई !!!
अब लिंक पर जाती हूँ..
सादर
अनु
वाह...आपके विहान ब्लॉग को बुकमार्क कर लिया है..पढेंगे आराम से...सभी पोस्ट बड़ी रोचक सी मालुम हो रही हैं वहां की :)
जवाब देंहटाएं