सुनो ,
जब मैं कहती हूँ या कि
मुझे लगता है कि ,
तुम खूबसूरत हो ।
तब यकीनन इसका आधार ,
नही होता महज
तुम्हारा खूबसूरत होना।
बल्कि होता है मेरा वह सौन्दर्य-बोध
जो तलाश लेता है खूबसूरती
कहीं भी ।
तुम्हारे दिये दंश और आघातों को
सहती हूँ चुपचाप ।
तो इसका आधार नहीं रहा कभी
तुम्हारा सबल
या मेरा अबला होना ।
न ही यह अहसास कि
औरत तो होती ही है
सहने के लिये ।
इसका आधार तब भी
वह सत्ता ही रही है
अपराजेय सत्ता प्रेम की जो
महसूस नही होने देती
कभी दर्द को दर्द की तरह
और,
जब मैं कहती हूँ
कि तुम गलत हो
तब तुम होते हो सचमुच
गलत ही .
क्योंकि तब भी उसका आधार है
वह पीड़ा ही
जो उपजती है
पाकर तुम्हारी असंवेदना निर्मम
अपने स्तर से बहुत नीचे उतरते कदम .
पीड़ा भी तो एक रूप है प्रेम का ही . ,
इसे तुम कब स्वीकार करोगे ??
महत्वपूर्ण प्रश्न ...
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुती,आभार.
जवाब देंहटाएं"जानिये: माइग्रेन के कारण और निवारण"
वाह .. इन्नर ब्यूटी ही है जो आकर्षित करती है हमेशा ...
जवाब देंहटाएंप्रेम का खिचाव ही है जो भुला देता है सब कुछ ओर बहुत बड़ा दिल चाहिए इस सत्य को स्वीकार करने में ...
दीदी! आपने जब कभी 'नारी' को केंद्र में रखकर कुछ भी लिखा है, वह एक आम लेखन से हमेशा अलग और नारी की गरिमा को अपने सर्वोच्च स्तर पर व्याख्यायित करता है. इसमें कहीं भी न स्वयं को ऊंचा, न पुरुष को नीचा, न अपने को अबला बताना, न पुरुष से कोई शिकायत... आपकी रचनाओं में पायी जाने वाली नारी अपने सम्मान की भीख नहीं मांगती या उसे पाने के लिए आंदोलन नहीं करती, बल्कि अपनी गरिमा की वो बड़ी लकीर खींचती है, जिसके आगे तमाम दावों की लकीरें खुद ब खुद छोटी हो जाती हैं!!
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ सीखना है आपसे!!
मन की बातें मन ही जाने,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
लम्बा वक्त लगेगा अभी इसे स्वीकारने में..... अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंबड़े दिनों बाद ब्लॉगों की सैर पर निकली तो आपकी यह छोटी सी कविता काफी अर्थ समेटे लगी। बधाई गिरिजा जी
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