जब पूरी तरह मुझे सुने बिना ही
तुम निकल जाते हो
जैसे कोई जल्दबाज हॅाकर
अखबार फेंककर
किसी दूसरी गली में होजाता है ओझल ,
तब छोड जाते हो किसी बच्चे को
जैसे अकेला और आकुल
किसी सुनसान, अँधेरे,
और भुतहे घर में...।
जैसे फटाक् से गिरा देता है कोई शटर
राशन के लिये
लम्बी लाइन में लगे
किसी आदमी का
नम्बर आने से पहले ही ।
गुल होजाती है जैसे बिजली
अचानक रात के अँधेरे में ,
किसी बहुप्रतीक्षित पत्र को,
पढने से पहले ही...।
और जैसे थप्पड मार देता है कोई शिक्षक
अपने छात्र को ।
उसका सवाल सुने समझे बिना ही ।
नही जाना चाहिये तुम्हें ,
या कि किसी को भी
वह बात सुने बिना
जो दिल में छुपी रहती है
दर्द की तरह
जिन्दगी को जकडे हुए
एक ही जगह पर ।
तुम निकल जाते हो
जैसे कोई जल्दबाज हॅाकर
अखबार फेंककर
किसी दूसरी गली में होजाता है ओझल ,
तब छोड जाते हो किसी बच्चे को
जैसे अकेला और आकुल
किसी सुनसान, अँधेरे,
और भुतहे घर में...।
जैसे फटाक् से गिरा देता है कोई शटर
राशन के लिये
लम्बी लाइन में लगे
किसी आदमी का
नम्बर आने से पहले ही ।
गुल होजाती है जैसे बिजली
अचानक रात के अँधेरे में ,
किसी बहुप्रतीक्षित पत्र को,
पढने से पहले ही...।
और जैसे थप्पड मार देता है कोई शिक्षक
अपने छात्र को ।
उसका सवाल सुने समझे बिना ही ।
नही जाना चाहिये तुम्हें ,
या कि किसी को भी
वह बात सुने बिना
जो दिल में छुपी रहती है
दर्द की तरह
जिन्दगी को जकडे हुए
एक ही जगह पर ।
वक़्त तो लगता है।
जवाब देंहटाएंबात मन ही में रही, औरों की सुनी अपनी ना कही।
जवाब देंहटाएंमन की पूरी तरह सुने या किसी को समझे बिना, निष्कर्ष निकालना अनुचित है,
जवाब देंहटाएंनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
बहुत गहराई से निकली मार्मिक कविता...सचमुच हम सुनते हुए भी कई बार अनसुनी कर देते हैं बातों को..
जवाब देंहटाएंनही जाना चाहिये तुम्हे या किसी को भी बात सुने बिना। कितनी हताशा दे जाता है यह व्यवहार।
जवाब देंहटाएंदीदी,
जवाब देंहटाएंकितने सहज और सामान्य से लगाने वाले प्रतीकों के माध्यम से आप कितनी असामान्य और गहरी बा कह जाती हैं, यह अनुकरणीय है किसी भी साहित्य सर्जक के लिये... हर बार सोचता हूँ कि कभी तो प्रशंसा के अतिरिक्त कोई आलोचना का स्थान ढूंढूं आपकी कविता/रचना में... लेकिन निराश होना पडता है..
"जैसे फटाक् से गिरा देता है कोई शटर"... इस पंक्ति में 'फटाक' शब्द का प्रयोग सचमुच वह आघात दर्शाता है जो उस परिस्थिति में उन ग्राहकों के ह्रदय में उपजा होगा... और बिजली का गुल हो जाना तो मेरे साथ कई बार हुआ है - भले ही पत्र पढते समय नहीं, बल्कि जब भी कोई मनपसंद डीवीडी लेकर आया हूँ तब...
कविता का केंद्रीय भाव दिल को छू जाता है... हर पाठक को अपना दिल टटोलने के लिये मजबूर करती कि क्या तुमने कभी ऐसा किया है!!
क्या कहूँ, दीदी.. निशब्द हूँ!!
किसी को मन का न सुना पाने की पीड़ा ... छटपटाहट ... जीवन भर नश्तर की तरह चुभती है ... बहुत ही सहज बिम्ब के माध्यम से बात को रखने का सफल प्रयोग ... लाजवाब रचना ...
जवाब देंहटाएंवाह आनंद आ गया.... कितनी गहरे है कविता में... सचमुच हरएक का सच... जो भी पढ़े -सुने डूब जाये
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