गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

संकल्प एक सास का


एक हैं पुष्पा जीजी । मेरे गाँव की हैं । धन-बल और कुलीन सम्पन्न एक ऐसे परिवार की बेटी जहाँ उनके समय में बहू-बेटियों को बहुत ही निचले दर्जे पर रखा जाता था ( अब तस्वीर कुछ बदली है हालांकि ज्यादा नही )। रूढिवादिता के चलते पुष्पाजीजी शायद पाँचवी पास भी नही कर पाईं कि उनका विवाह होगया । यों विवाह तो मेरा भी बहुत जल्दी कर दिया गया लेकिन तब तक मैंने ग्यारहवीं कक्षा तो पास कर ही ली थी और बाद में इस समझ के साथ कि पढना ही सही अर्थों में कुछ हासिल करना है , स्कूल में बच्चों को पढाते-पढाते खुद भी जैसे तैसे बी ए और फिर एम ए की परीक्षाएं भी पास कर ली लेकिन पुष्पाजीजी परम्परागत बहुओं की तरह अपनी भरी-पूरी ससुराल के प्रति समर्पित होगईं ।
 कुछ साल तक हमारा मेल-मिलाप न के बराबर ही रहा । 
एक साल पहले उनसे जो भेंट हुई तो मिलने का सिलसिला चल निकला । उन्होंने यहीं आनन्दनगर  में भी एक मकान खरीदा है । इसलिये आनाजाना बना रहता है । 
तीन बहुओं की सास और चार पोते-पोतियों की दादी बनने के बावजूद पुष्पाजीजी में तन मन और बोलचाल से कोई खास बदलाव नही है । हाँ अब एक नई चमक है आँखों में । गर्व और पुलक से भरी चमक । मुझे याद है सालभर पहले जब हम मिले थे उन्होंने कहा था--  
"गिरिजा ,हमाई मनीसा कौ गाइवौ तौ सुनिकैं देखियो ।" 
मनीषा ,उनकी बडी बहू । देहात की सीधी सादी लडकी । अब दो बच्चों की माँ । गाती होगी जैसे कि गाँव की दूसरी बहू-बेटियाँ भजन-कीर्तन गातीं हैं । मैंने तब लापरवाही के साथ यही कुछ सोचा इसलिये ज्यादा उत्सुकता नही दिखाई । लेकिन पुष्पाजीजी को बडी उत्सुकता थी । 
जल्दी ही वह अवसर भी मिल गया । कुछ दिनों पहले उनके यहाँ सुन्दरकाण्ड-पाठ का आयोजन था । आयोजन बडा ही सरस और मधुर संगीतमय था । तीन घंटे कब बीत गए पता ही न चला । इसे कहते हैं मानस-पाठ अन्यथा मानस-पाठ के नाम पर लोग कैसे भी गा गाकर पर जो अत्याचार करते हैं वह कम कष्टप्रद नही होता । उसी रात मनीषा ने भी गाया । गाया क्या ,निःशब्द कर दिया कुछ पलों के लिये । क्या वे कोई साधारण भजन थे ? जिनके हमने सिर्फ नाम सुने हैं वे 'यमन ,भैरव ,मधुवन्ती , वृन्दावनी-सारंग, कौशिक आदि रागों की बन्दिशें थीं और आवाज ??..क्या बताऊँ ! मन्द्र के तीसरे काले से तारसप्तक के पाँचवे काले तक ( जैसा कि संगीत के जानकार कहते हैं ) बेरोकटोक चढती उतरती खनकती हुई मीठी आवाज । सधे हुए अभ्यस्त सुर । गाना नही आता तो क्या हुआ ,उसकी परख तो थोडी बहुत है ही । जिस त्वरित गति से वह तानें बोल रही थी आलाप ले रही थी , मैं चकित अपलक देख रही थी । कोई चमत्कार सा था मेरे सामने । 

"पुष्पाजीजी क्या है यह ?" 
"कुछ नही बहन । एक दिन इसे एक 'उस्ताज्जी' ने एसे ही भजन गाते सुन लिया था सो घर आए और बोले कि अगर यह बेटी मेहनत करले तो नाम कमाएगी । साक्षात् सरस्वती बैठी है इसके कण्ठ में । बस मैंने कह दिया कि कि ऐसा है तो घर का काम मैं सम्हालूँगी । मनीषा चाहे जितना समय सीखने में लगाए । अब वे ही इसे सिखा रहे हैं । बच्चों और घर के काम को मैं और छोटी बहू सम्हाल लेती है । 'उस्ताज्जी' कहते हैं कि अगर यह लगन से गाती रही तो बडी बात नही कि एक दिन तानसेन समारोह में गाए । सो बहन मैंने तो सोच लई है कि मुझसे जो बनेगा करूँगी पर मनीषा को उसके लच्छ (लक्ष्य) तक पहुँचाने में पूरी कोसिस करूँगी । "
ग्रामीण अभिजात्य और संकीर्ण परम्परावादी परिवार की अनपढ कही जाने वाली पुष्पाजीजी धर्म और जाति के भेद को ,बहू-बेटा के अन्तर को मिटा कर अपनी बहू को एक कुशल तबलावादक और संगीतज्ञ उस्ताद जी से संगीत शिक्षा दिलवा रही हैं । 
पुष्पाजीजी , तुम्हें अनपढ कहने वाले अनपढ हैं । तुम्हारी समझ के आगे हमारी पढाई-लिखाई छोटी पडगई । मनीषा की साधना और तुम्हारा संकल्प जरूर पूरा होगा ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन संसद पर हमला, हम और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बहुत प्रेरक प्रसंग...पुष्पाजी व उनकी बहू को बधाई !

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  3. दीदी, बहुत से भाव एक साथ बादलों की तरह मन से गुज़र गये.. आपकी बात पर और उससे जुड़ी अपनी बात पर हँसी, पुष्पा जिज्जी के अपने व्यक्तित्व पर परम्पराओं के प्रति आक्रोश, उनका स्वयम का एक अपरम्परागत सास का रोल अदा करना, बहू मनीषा की साधना ...

    आपकी बात "देहात की सीधी सादी लडकी । अब दो बच्चों की माँ । गाती होगी जैसे कि गाँव की दूसरी बहू-बेटियाँ भजन-कीर्तन गातीं हैं " से याद आई अपनी वो घटना जब मैंने एक देहाती वृद्ध महिला का हाथ पकड़कर, उनके खींचने के बावजूद, अंगूठा लगाकर भुगतान के लिये भेज दिया था और तब पता चला कि जिन्हें मैं वेश-भूषा से देहाती/अनपढ़ समझ रहा था वो हस्ताक्षर करती थीं!
    ख़ैर, जिज्जी और बहूरानी दोनों ने एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है. हम बहुधा अपने आसपास की प्रतिभाओं को नकार देते हैं (जैसे अपने बच्चों की प्रतिभा ही) लेकिन उसकी पहचान, उसका पोषण, प्रोत्साहन और अवसर उस प्रतिभा को निखार प्रदान कर व्यक्ति को प्रतिभावान बनाता है.
    मेरा सादर प्रणाम पुष्पा जिज्जी को और शुभकामनायें बहू मनीषा को कि वो अवश्य तानसेन समारोह में सम्मिलित हो!

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  4. बहुत बढ़िया। आप उन्‍हें गाते देख नि:शब्‍द थे। मैं घटना विवरण को पढ़ कर निहाल हूँ। मनीषा जी और उनकी सासू जी धन्‍य हैं।

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  5. कितना अच्छा लगता है ऐसा कुछ सुन कर.......
    मन को सुकून सा मिला...

    सादर
    अनु

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  6. पढे लिखो से अनपढ़ बाजी मार ले जाते हैं।
    पुष्पाजी को प्रणाम।
    पुष्पाजी से मिलाने का आपका बहुत आभार !

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  7. इस लगन और समर्पण को हमारी भी शुभकामनायें हैं, प्रेरक उदाहरण।

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  8. ऐसे लोग बहुत कम होते हैं दुनिया में ...धन्य है दोनों हमारी भी शुभकामनायें।

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  9. `हमारी सारी धूल पड़ी हुई मानसिकता को साफ कर दिया पुष्पाजीजी के इस स्वागतीय कदम ने। ऽनेक शुभकामनाये

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  10. पुष्प जी ने जो कदम उठाया, जैसा माहौल बनाया वैसा हर घर में बनना चाहिए, यही समय की जरूरत है, यही सही है, यही उत्कृष्ट है....

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