सुर्मई अँधेरों में न ,चम्पई उजालों में
जिन्दगी है खूबसूरत , सिर्फ कुछ ख्यालों में ।
ना जबाबदेह रहा ,कोई भी कभी जिनका ,
हम रहे सदा उलझे , ऐसे ही सवालों में ।
बातें शानो-शौकत की ,हैं फज़ूल उसके लिये ।
करता है गुजारा जो फ़क़त निवालों में ।
फैली है नज़र जिसकी , इस ज़मी से अर्श तक ,
क़ैद फिर रहेगा वो कैसे बन्द तालों में !
देखते हैं ख़्वाब जो , उठाते तिनका नही
रोजगार ढूँढते हैं ,दंगों -हडतालों में ।
क्या कहें मुकरते हैं , क्यों भला वो पीने से,
ज़हर भर गया है अब हकीक़त के प्यालों में ।
दर-ब-दर भटकता है अब वो सिर्फ घर के लिये
सब लुटा के बैठा है ,पग-पग दलालों में ।
मेघदूत के हाथों , पातियाँ कितनी भेजीं
ढूँढते हैं जबाब उनका ,नदी और नालों में ।
आज गहरे दरिया में डूब जाना बेहतर है
छटपटाते फिरने से साहिलों पे जालों में ।
जिन्दगी है खूबसूरत , सिर्फ कुछ ख्यालों में ।
ना जबाबदेह रहा ,कोई भी कभी जिनका ,
हम रहे सदा उलझे , ऐसे ही सवालों में ।
बातें शानो-शौकत की ,हैं फज़ूल उसके लिये ।
करता है गुजारा जो फ़क़त निवालों में ।
फैली है नज़र जिसकी , इस ज़मी से अर्श तक ,
क़ैद फिर रहेगा वो कैसे बन्द तालों में !
देखते हैं ख़्वाब जो , उठाते तिनका नही
रोजगार ढूँढते हैं ,दंगों -हडतालों में ।
क्या कहें मुकरते हैं , क्यों भला वो पीने से,
ज़हर भर गया है अब हकीक़त के प्यालों में ।
दर-ब-दर भटकता है अब वो सिर्फ घर के लिये
सब लुटा के बैठा है ,पग-पग दलालों में ।
मेघदूत के हाथों , पातियाँ कितनी भेजीं
ढूँढते हैं जबाब उनका ,नदी और नालों में ।
आज गहरे दरिया में डूब जाना बेहतर है
छटपटाते फिरने से साहिलों पे जालों में ।
फैली है नज़र जिसकी जमी से आसमां तक ,
जवाब देंहटाएंकैसे रहेगा वो बन्द होकर तालों में !
बढ़िया ग़ज़ल...
सादर
अनु
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंग़ज़ल का मीटर मुझे परेशान किये रहता है..सुकून से न लिखने देता है न पढ़ने।
देवेन्द्र जी , मैं गज़ल का मीटर क्या होता है, मुझे नही मालूम । इसे गज़ल न कहकर भावों की मात्र एक तुकबन्दी कह सकते हैं ।
हटाएंजी।
हटाएंगिरिजा जी, बहुत सुंदर भाव पिरोये हैं आपने शब्दों में...मीटर की चिंता कौन करे...
जवाब देंहटाएंजबाबदेह नही रहा ,कोई भी कभी जिनका ,
जवाब देंहटाएंउलझे रहे हैं हम ,कुछ ऐसे ही सवालों में ..
लाजवाब भाव पिरोये हैं हर शेर में ... मुझे लगता है जब भाव प्रधानता ले लेते हैं .. मीटर के कोई मायने नहीं रहते ... रचना भाव से जानना ज्यादा अच्छा है ...
समय के व्यर्थ को कुछ पंक्तियों में गहराई से उकेरा है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,लोहड़ी कि हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसाधू साधू
जवाब देंहटाएंइस रचना में छिपा सन्देश स्पष्ट है दीदी! किंतु इसे गज़ल की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. इस पूरी रचना के अलग-अलग छन्दों में ग़ज़ल की भाषा में कहें तो बहर का दोष है.. ! वैसे थोड़ा सा प्रयास करके, इसे एक बहर में लाकर पूरी ग़ज़ल बनाया जा सकता है!!
जवाब देंहटाएंवैसे रचना सचमुच आपकी छाप लिए है!!
यह तो आपने सही कहा । इसे गज़ल की कसौटी पर नही उतारा जा सकता पर जैसा कि मैंने देवेन्द्र जी की टिप्पणी में लिखा है कि मुझे मीटर या बहर की कोई जानकारी नही है । गज़ल लिखना मुझे सीखना होगा ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंआप अब इस रचना को काफी सुधार संशोधन के बाद नए रूप में देख रहे हैं । परिष्कार का यह कार्य किया है भाई सलिल जी ने । मेरे लिये यह बडी बात है कि वे मेरी रचनाओं पर इतना ध्यान देते हैं ।
जवाब देंहटाएंदीदी...
जवाब देंहटाएंआभार आपका... मेरा तो कुछ भी नहीं... और आपके लिखे को संशोधित करने का साहस मुझमें कहाँ.. हाँ आपकी रचनाओं पर मेरा विशेष ध्यान रहता है.. क्योंकि इनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है!!
हमेशा की तरह एक शानदार रचना... मन आनंदित हो गया
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत ही सुन्दर रचना।
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