बुधवार, 19 अगस्त 2015

रामौतार सुनो !

बेशक , इसमें तुम्हारी गलती नही थी 
कि , मोह टूट गया तुम्हारा अपने गाँव से ।
अपने खेत--खलिहान ...
और नीम की छांव से ।
कि खींच लिया तुम्हें बाजार ने ।
शहर के व्यापार ने ।

मुझे मालूम है कि
घास फूस या खपरैल की छत
और तुम्हारे घर की दीवारें कच्ची थीं
लेकिन तुम्हारे लिये अच्छी थी ।
गोबर मिट्टी के गारे से
दीवारों की मरम्मत करते हुए
देखा था तुम्हें ऊर्जा से भरपूर
तनाव से दूर ।

याद करो रामौतार ,
कि तुम खुश थे,
खुले आसमान के नीचे ही
तारों से बतियाते हुए ,
गिने--चुने सपनों की चाँदनी तले.
सन्तुष्ट थे ,खरहरी खाट पर ही,
लेते हुए एक भरी-पूरी नींद ।

अपने खेतों को जोतते हुए
या सडक के लिये माटी खोदते हुए
तुम नही थे जरा भी असन्तुष्ट या रुष्ट
राह की धूल से ।
पाँव में चुभे शूल से ।

जब टीवी और अखबारों ने जगाया
प्रगतिवादी विचारकों ने
भोलापन और अज्ञान बताया
तुम्हारी सन्तुष्टि को ।
धरती पर तुम्हारे हाथों रचे
सौन्दर्य के प्रशंसकों ने आकर
तुम्हारा ही खाकर  
तुम्हें अहसास कराया कि
तुम दीन हो ,हीन हो,
छोटे से पोखर में साँस लेती मीन हो.
अज्ञानी, अशिक्षित और पिछड़े हो 
गोबर और माटी में फालतू ही लिथड़े हो.
अभावों से लड़ रहे हो 
गाँव में पड़े बेकार ही सड़ रहे हो 

भागती हुई सी भीड़ ने कहा--
"शहर चल रामौतार ,शहर चल
गरीबी और बेरोजगारी की
दलदल से निकल
सब उन्नति करेंगे ,आगे बढ़ेंगे
टीवी, कम्प्यूटर के जरिेये
दुनिया से मिलेंगे 
तभी देश आगे बढ़ेगा
हर रामौतार उन्नति की सीढियाँ चढ़ेगा ।
मिलेगी मुक्ति कीचड़-धूल से
जाहिल रह जाने की भूल से ।"
तब तुम्हारी क्या गलती कि,
दुनियाभर में तमाम रंग भर देने वाली
तुम्हारी अपनी ही दुनिया तुम्हें
लगने लगी बेरंग और बेढंग.
सभ्य लोग अच्छी नजर से 
कहाँ देखते हैं
गाँव वालों को ?
बेर-बबूल की छाँव वालों को ।
मानते हैं निम्नस्तर
बेहाल बदतर
तुम कबतक सुनते सहते वह सब
और क्योंकर ?
इसीलिये तुम जैसे नींद से जाग गए 
और अपनी जमीन बेचकर
शहर भाग गए ।
यों तो मिल ही जाता है
शहर में कोई न कोई धन्धा ।
उजला या गन्दा ।
तुम बस कमाने लगे हो ।
कितने आसमान आँखों में
समाने लगे हो ।
आसमान , जिससे हर कोई नीचा होता है 
सभ्यता की दौड में बस खींचा हुआ होता है ।

रामौतार ,
तुम्हारी जरा भी गलती नही कि
अब तुम देखना नही चाहते
जाहिल जिन्दगी गाँव की ।
गलती तो उनकी है जो इतराते है
तुम्हारा उगाया अन्न खाते हैं
और तुम्हें जाहिल कहकर
खुद को सभ्य बताते हैं । 
लेकिन रामौतार ,
तुम्हारे साथ धोखा हुआ है ।
जड़ से उखडे हुए पेड से तुम
जब तक समझ सकोगे कि
क्रैडिट कार्ड से खुशियाँ नही खरीदी जा सकतीं ।
कम्प्यूटर से फसलें नही उगाई जा सकतीं ।
अन्न का विकल्प नही बन सकता कोई 'गैजेट'
कोई प्रोजेक्ट, नही मिटा सकता भूख,
अनजान हो चुके होगे तुम अपने आप से ही ।

रामौतार ,भले ही गलती तुम्हारी नही है
लेकिन फिर भी ,
सजा से बच न सकोगे तुम भी ।
पहचानने से इनकार कर देगी तुम्हें
तुम्हारी अपनी सिसकती हुई जमीन ,
जहाँ खडी होंगी बहुमंजिला इमारतें ।
मुर्दा पडे खेतों की छाती पर ।
समय हाथ से जा चुका होगा 
उसे शहर खा चुका होगा
हर खेत ,मैदान और जंगल को ।
गाँव को कही निर्वासित कर हमेशा के लिये ।

शहर जाकर शहर हो रहे
कितने ही सुखी-सम्पन्न रामौतार ,
एक दिन ढूँढेंगे पुरानी खुशियाँ
जिन पर टिकी है सारी दुनिया
दुनिया जब पूरी तरह शहर हो जाएगी ।


सुनो रामौतार ,
यही कामयाबी तुम्हारे लिये 
कहर होजाएगी ।

14 टिप्‍पणियां:

  1. जबरदस्त .... जब तक हम जागेंगे बहुत देर हो चुकी होगी. बहुत ही खूबसूरती से आपने बेहद जरूरी बात कह दी है.

    जवाब देंहटाएं
  2. उजड़ते गांवों, गांवों से पलायन कर चुके या कर रहे ग्रामीणों की पीड़ा उभर आई है इस कविता में।

    जवाब देंहटाएं
  3. गाँवों से सभी लोगों का शहर की ओर पलायन विकास की अवधारणा नहीं होनी चाहिए। वहीं गाँव में शिक्षा, स्वास्थ और स्वच्छ पेय और बिजली की आवश्यकता है। गाँव की अर्थव्यवस्था तब ही सुधरेगी जब प्रति व्यक्ति ज़मीन पर निर्भर लोगों की संख्या में कमी आए। ये तभी होगा जब कुछ लोग कुटीर उद्योग धंधों में लगें। इसके लिए कुछ तो पलायन होगा पर रामअवतार जैसी त्रासदी नहीं होगी

    रामअवतार के दुख को बखूबी व्यक्त करने के लिए बधाई।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद मनीष जी . गाँवों से पलायन हो रहा है अभावों के कारण भी और चारों ओर दिखती चकाचौंध के कारण भी .मेरा एक छात्र जो बड़े सम्पन्न किसान का बेटा है . काफी जमीन ,ट्रैक्टर , नलकूप और भी सुविधाएं हैं पर वह दो साल मेेरे पीछे पड़ा रहा कि चाहे कितना ही पैसा लग जाए पर मुझे शहर में नौकरी दिलवा दो .जो सचमुच अभावग्रस्त हैं वे तो बेचारे शहर जा भी नही सकते .दरअसल गाँव में रहकर ही गाँव की उन्नति होगी . धीरे धीरे उन्न्ति के बारें में सोचें . ....

      हटाएं
  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20 - 08 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2073 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आज की हकीकत - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  6. क्रैडिट कार्ड से खुशियाँ नही खरीदी जा सकतीं ।
    कम्प्यूटर से फसलें नही उगाई जा सकतीं ।
    अन्न का विकल्प नही बन सकता कोई 'गैजेट'
    कोई प्रोजेक्ट, नही मिटा सकता भूख,
    अनजान हो चुके होगे तुम अपने आप से ही ।

    बहुत ही सही और सच्ची बात कही है आपने..गैजेट्स के दीवाने आज कल गाँव हो या शहर हर कहीं बढ़ते जा रहे हैं पर इसके कुपरिणाम से बेखबर नजर आते हैं

    जवाब देंहटाएं
  7. एक सच की सुंदर अभिव्यक्ति रामौतार हर जगह है ।

    जवाब देंहटाएं
  8. शानदार !! क्या कहूँ बुआ...निःशब्द हूँ..
    बहुत बहुत सुन्दर...!

    जवाब देंहटाएं
  9. रामौतार के माध्यम से जीवन का द्वन्द बखूबी पेश किया है आपने. जो इस किनारे है वो उस किनारे की चमक से चौधियाये हुए हैं. और जो उस किनारे हैं वो इस किनारे की खूबियों की स्मृति में डूबे हुए हैं. उद्यम जारी रहता है. नित्य शोध जारी रहता है (और शांति की खोज). सही जगह मिल नहीं पाता है. जीवन बीत जाता है.

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर व सार्थक रचना ..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

    जवाब देंहटाएं
  11. शायद समझ नहीं पाया इस मायाजाल को रामोतार ... कामयाबी कभिअकभी कितना कुछ ले जाती है अपने साथ ... शायद उम्र के किसी दौर में समझ ए ये सब ...संवेदनशील रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  12. कोई प्रोजेक्ट, नही मिटा सकता भूख,
    अनजान हो चुके होगे तुम अपने आप से ही ।

    .... सच्ची बात कही है संवेदनशील रचना

    जवाब देंहटाएं
  13. एक किसान के मज़दूर बन कर और भी असंतुष्ट जीवन जीने की गाथा दुखद है . गाँवों की दुर्दशा और शहरों की बदहाली - कठिन समस्या है !

    जवाब देंहटाएं