एक युग
से गूंज कर
लौटती रही मुझ
तक
,
मेरी ही आवाज
.
और मैं सोचती
रही
कि
पुकारा है मुझे
पहाडों
ने.
बड़ा अच्छा लगता था
यह सोचकर कि
पत्थर भी दिल की सुनकर
देते हैं प्रत्युत्तर .
मेरी ही आहट
से
जागती रही हैं
मेरी खामोशियाँ
और मैं लिखती
रही
पातियाँ
अनाम अविराम .
दस्तक देते रहे
मेरी साँसों के स्पन्दन
बंद दरवाजों पर
,
तलाशने कुछ खोया
हुआ
अंधेरों में .
जहाँ एक दुनिया थी .
लेकिन अब,
अहसास होने
लगा
है
कि
चट्टानों के सीने पर
सिर रखकर रोना
व्यर्थ
है
वेदना और प्रतीक्षाओं
का
?
कि यह विश्वास करना
कि पत्थर भी सुनते और बोलते हैं
,
धोखा देना है
खुद
को
.
लेकिन इस धोखे का अहसास होना
भी
शायद ,
अंत होना है
एक
पूरी
दुनिया
का
.
बहुत सटीक रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बेहद मार्मिक रचना..पर दुनिया का अंत कभी नहीं होता..क्योंकि जिसे अहसास हो रहा है वह तो शाश्वत है..और वह दुनिया से बाहर तो नहीं..
जवाब देंहटाएंयही सच है
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (06-07-2017) को "सिमटकर जी रही दुनिया" (चर्चा अंक-2657) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आवाज़ की तरह ज़िन्दगी भी घूमती है और वापस आती है किसी बूमरैंग की तरह ... और एहसास दिलाती है किसी के होने का ... शायद जीवन भी यही है एक चक्र सा ... घूमता है फिर लौटta है उम्र के पड़ाव पर ... बहुत दिनों बाद आपने कुछ लिखा है ... बहुत सुखद लगा आपको पढ़ना ...
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर ! अंतिम पंक्तियाँ बहुत ही मार्मिक हैं ! भ्रमों का टूट जाना किस तरह से इंसान को भी तोड़ जाता है इसकी बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति !हार्दिक शुभकामनाएं गिरिजा जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 4अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना। मन को झंकृत करती हुई इक गूंज की तरह संवेदनाओं को छेर गई। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, सार्थक....
जवाब देंहटाएंसाधु साधु
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर । जीवन के मार्मिक कड़वे सच को उद्घाटित करती है रचना । सादर ।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बहुत ही सराहनीय है ,शुभकामनायें ,आभार
जवाब देंहटाएंभीतरी शाश्वत एहसासों से भरी सुंदर , भावपूर्ण रचना ---------
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
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