गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

कहो ना



करोना से डरो ना “--
मित्रवर !
ऐसा हरगिज कहो ना .
यह नहीं है 
कोई काव्य-सृजन
कि तुकबन्दी का 
करना ही है निर्वहन .
यह तो अदृश्य शत्रु के साथ संघर्ष है ,
कैसे लड़ें और जीतें ,
यही बड़ा विमर्श है .
शत्रु सामने हो तो 
वार किया जाए
दवा हो तो रोग का 
उपचार किया जाए .
नहीं पता कि कब ,कैसे ,कहाँ और किस माध्यम से
हमला कर, 
कर देगा आपको निरुपाय .
आप अँधेरे में ही तीर छोड़ेंगे असहाय .
यह अगोचर है ,इसीलिये तो 
अधिक घातक है
अपनेपन में ही होता मारक है .
एक बार हाथ मिला लिया तो
छोड़ेगा नहीं  .
अपना रुख आसानी से मोड़ेगा नहीं .
भय से तो भूत भी भागते है .
सुना है न ? 
न सही उसके मन में ,
भय जरूरी है 
तुम्हारे मन में ,
उसे हराने के लिये 
निकटता नहीं दूरी चाहिये .
सबसे अलग रहने की मजबूरी चाहिये .
डरोगे नहीं तो, छुपोगे भी नहीं .
छुपोगे नहीं तो फिर बचोगे भी नहीं .
देखलो ,उन्हें जो हैं निडर .
किस तरह बनते जा रहे हैं वे मौत का घर .
डरकर घर में रहना ही एकमात्र बचाव है
कोरोना पर विजय का उपाय है .
तो मित्रवर ,
अब ऐसा हरगिज कहो ना
कि करोना से डरो ना .

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