बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

चाँदनी वाला मोहल्ला

एक पुरानी पोस्ट फिर से 

Sunday, July 4, 2010

चाँदनी वाला मोहल्ला-----24 जून ग्वालियर
----------------------------------------------------------
हम जिस मोहल्ले में रहते हैं ,वह ग्वालियर की पुरानी और पिछड़ी बस्तियों में से एक है ।नाम है  ,'कोटावाला मोहल्ला'। कहते हैं कि सामने खण्डहर सी दिखने वाली हवेली कोटावाले राजा की थी ।मोहल्ले का यह नाम इसीलिये पड़ा ।इससे ज्यादा जानकारी रखने वाले लोग अब नहीं हैं ।न ही जानने की किसी को जरूरत व फुरसत है ।
मेरा भतीजा इसे--'कुत्ता वाला मोहल्ला' कहता है । जो कभी कभी सटीक लगता है ।जब यहाँ आदमियों से ज्यादा कुत्ते नजर आते हैं । काले ,भूरे,बादामी ,चितकबरे छोटे- बड़े, सीधे-लड़ाकू --सभी तरह के बहुत सारे देशी कुत्ते (विदेशियों को ऐसी आजादी कहाँ )। दिन में खूब खिलवाड़ करते है।और रात में खूब मन भर रोते हैं ।भगाओ तो भाग जाते हैं पर कुछ देर के लिये, आपको यह तसल्ली देने ही कि आपकी आज्ञा का पालन होता तो है कम-से-कम ।
पर मेरे दिमाग में इस मोहल्ले का एक नया और प्यारा सा नाम उगा है ----चाँदनी वाला मोहल्ला ।
जी नही , यह चाँदनी चाँद से उतरी किरण नही है ।और ना ही कोई रूपसी युवती ।यह तो सामने रहने वाली पारबती की डेढ-दो साल की बेटी है ,जो घर से ज्यादा गली में रहती है ।गाती, खेलती,गिरती,,रोती....।
सुबह होते ही चाँदनी अपनी कोठरी से बाहर आजाती है। दिखाने भर के लिये दूध डाली गई पतली काली कटोरी भर चाय के साथ बासी रोटी खाकर घंटों तक गली में रमक-झमक सी घूमती रहती है ।कभी वह कुत्ते के गले में बाँहें डालना चाहती है तो कभी बैठी हुई गाय की पीठ पर सवारी करने के मनसूबे बनाती है ।यही नही ,जब उसका रास्ता रोकने की हिमाकत करता कोई सांड़ खड़ा होता है, वह उसके नीचे से निकल कर ऐसे खिलखिलाती है जैसे कोई बाजी जीत गई हो ।माता-पिता काम पर जाते हैं तो क्या हुआ ,जानवर चाँदनी का पूरा खयाल रखते है ।इस मासूम परी को शब्दों में बाँधना आसान नही है ।मैंने तो बस कोशिश की है --

(1)
कुँए की मुडेर पर,
धूप के आते-आते
उतर आती है चाँदनी भी
कोठरी के क्षितिज से।
बिखर जाती है पूरी गली में ।
धूप ,जो---
उसके दूधिया दाँतों से झरती है ।
(2)
चाँदनी सुबह-सुबह,
भर जाती है मन में
नल से फूटती
जलधार की तरह
मन--- जो रातभर लगा रहता है ,
कतार में ।
खाली खडखडाते बर्तनों सा,
भरने कुछ उल्लास,ऊर्जा ।
दिन की अच्छी शुरुआत के लिये ।
(3)
भरी दोपहरी में,
चाँदनी नंगे पाँव ही
टुम्मक-टुम्मक..
चलती है बेपरवाह सी
तपती धरती पर
आखिर ,कौन है वह,
जो बिछा देता है ,
हरी घास या अपनी नरम हथेली,
उसके पाँव तले ।
(4)
दूसरे बच्चों की तरह,
उसके कपडे साफ नही हैं
बाल सुलझे सँवरे नही हैं ।
पीने-खाने को दूध-बिस्किट नही है ।
और दूसरे बच्चों की तरह ,
मचलने पर उसे
टॅाफी या खिलौने नही मिलते है।
पर दूसरे तमाम बच्चों से ज्यादा,
हँसती-खिलखिलाती और खेलती है।
वह नन्ही बच्ची---चाँदनी ।
--------------------

और अन्त में ------------
चिडियों की चहकार है चाँदनी।
ताजा अखबार है चाँदनी ।
गजक मूँगफली बेचने वाले के गले की खनक,
दूधवाले की पुकार है चाँदनी ।

पहली फुहार जैसी।
फूलों के हार जैसी ।
भर कर दुलार छूटी ,
दुद्धू की धार जैसी ।




10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर पोस्ट ! चाँदनी की अठखेलियाँ पढ़कर और उसके चित्र देखकर वाक़ई लगता है वह बहुत बहादुर है, काश उसे शिक्षा का प्रकाश और मिले

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद और प्रणाम अनीता जी. मैं जब भी ब्लाग पर आई कोई टिप्पणी न देख हैरानी हुई. असल में वे स्पैम में पड़ी थी जिसकी जानकारी मुझे अभी हुई. जैसा कि सदा होता है आपकी टिप्पणी सबसे पहली है. आप हर रचना पढ़कर मुझे प्रोत्साहित करतीं हैं, आपका बहुत आभार.

      हटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. श्वेता जी, हार्दिक धन्यवाद. खेद है कि टिप्पणियाँ स्पैम में पड़ी रही जिसका मुझे पता ही न था. आज देखा तब आपकी टिप्पणी पढ़ने मिली. लिंक अभी देखती हूं.

      हटाएं
  3. किसी मासूम और किसी बुजुर्ग से मिलन जीवन को कुछ न कुछ तोहफा मिलने जैसा है ।
    चांदनी से मुलाकात, आपको नित नई ऊर्जा देती होगी । ये तो निश्चित है..सुंदर कृतियों से सुंदर सीख मिली 👏👏

    जवाब देंहटाएं
  4. गिरिजा जी ,
    इस चाँदनी से मिलवाने का शुक्रिया ।
    ज़िन्दगी को जीना
    शायद
    चाँदनी को आता है
    खुशी का कोई
    लम्हा
    उससे छूट कर
    नहीं जाता है ।।
    बहुत सुंदर पोस्ट ।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह! बहुत चांदनी की बहुत ही प्यारी रचना😍💓

    जवाब देंहटाएं