हरा भरा हैरिस गार्डन |
पैरामेटा में एक उन्नीस मंजिला बिल्डिंग में अठारहवीं मंजिल पर दो कमरों वाला फ्लैट जिसमें सबसे सुन्दर है बड़ी बाल्कनी जहाँ से सुदूर तक विहंगम देखा जा सकता है . यहाँ सभी इमारतों में शीशे के पर्दे हैं जिनके आरपार स्पष्ट देखा जा सकता है . मैं जहाँ बैठी हूँ मेरा व अदम्य का कमरा है . इसमें भी बड़ी सी खिड़की जिसे खिड़की की बज़ाय दरवाजा कहना अधिक उपयुक्त है . पलंग पर लेटे या बैठे मैं शीशे के पार सुदूर सब कुछ देख सकती हूँ .
कमरे में चांद |
एक साथ कितने रंग |
सघन विरल का साथ |
सामने छोटी सी नदी है जो शहर के केन्द्र
तक पहुँचते पहुँचते समुद्र हो जाती है .
नदी किनारे खूबसूरत जोड़ा |
नदी के किनारे पेड़ों से घिरा बहुत ही हराभरा मैदार है .नदी के साथ साथ सुन्दर फुटपाथ हैं जहाँ इक्का दुक्का लोग टहलते दौड़ते मिल जाते हैं . भीड़ नहीं हैं क्योंकि जगह ज्यादा और लोग कम हैं . नदी में नियमित रूप से स्टीमर चलते हैं ,जिन्हें फेयरी कहा जाता है . पैरामेटा से सिटी तक जाने के लिये यह एक बहुत सुन्दर सुहाना साधन है .
सजने के अजब ढंग |
यहाँ सबसे
फेयरी |
अच्छी बात है सड़क के साथ फुटपाथ जो पूर्ण सुरक्षित है . बस सड़क पार करने के लिये दस से पन्द्रह सेकण्ड रुककर सिग्नल के दौड़ते हुए आदमी के हरे होने की की प्रतीक्षा करनी है . फिर पार करने के बीच भले ही सिग्नल लाल होगया हो , गाड़ियाँ तब तक रुकी रहती हैं जब तक पार करने वाला सड़क पार न कर जाय . बिना सिग्नल निकलने वालों पर भारी जुर्माना लगता है चाहे वह गाड़ी वाला हो या पैदल चलने वाला . तो सही व्यवस्था लोगों की जागरूकता से कहीं अधिक सजा का डर है . फिर लोग नियम से चलने के आदी हो ही जाते हैं . राज्य कानून सजा की आवश्यकता है ही इसलिये .तभी स्पेंसर ने राज्य को बुराई मानते हुए भी आवश्यक कहा है .
सोमवार से शुक्रवार यहाँ दिनचर्या एक सी है . सुबह चाय नाश्ते के बाद अदम्य को स्कूल छोड़कर श्वेता मयंक का ऑफिस वर्क शुरु हो जाता है . मैं टहलने के लिये आधे से एक घंटा पार्क में या नदी किनारे निकल जाती हूँ . जहाँ अपने देश के बहुत से लोग मिलते हैं . संवाद न हो तो भी स्वदेशी होने का एहसास हो जाता है . वातावरण काफी साफ सुथरा और सुन्दर है . शनिवार रविवार अवकाश का होता है . आसपास ही मयंक और श्वेता के कई मित्र हैं . अमर , शिवम् ,सौरभ , रवि आदि ..ये दोनों दिन अक्सर इन्हीं मित्र-परिवारों के साथ खाते पीते हँसते खेलते गुजरते हैं . और तब सब भूल जाते हैं कि हम अपने देश में नहीं हैं ....
जारी.......
प्रकृति का अति मनोहारी वर्णन ! विदेश में रहकर अपने देश की याद आना स्वाभाविक है, सुंदर बगीचे, सारी सुविधाएँ और आराम होने पर भी अपना वतन तो अपना ही है।
जवाब देंहटाएंपरिवार और बच्चों का सानिध्य हमेशा उल्लास देता है बहुत सुंदर सराहनीय आलेख ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शब्द चित्र. पेड़ों की सुन्दरता का वर्णन पढ़कर लगता है कि कोइ वनस्पति शास्त्री भी इस प्रकार इन्हें नहीं निहारता होगा. वहीं दूसरी और नदियों की चर्चा मानो कोइ पर्यावरणविद की आत्मा आपके भीतर स्थित हो. रास आ गया है यह प्रवास आपको. आनंद लें और हमें भी आनंदित करें अपने अनुभव से.
जवाब देंहटाएंआप भी पूरे मन से पढ़ते हैं इसलिये आपकी प्रतीक्षा रहती है । ब्लाग को इसी बहाने सक्रिय रखने की कोशिश कर रही हूं ।
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