मंगलवार, 5 जुलाई 2022

सिडनी डायरी ---3



 
हरा भरा हैरिस गार्डन

पैरामेटा में एक उन्नीस मंजिला बिल्डिंग में अठारहवीं मंजिल पर दो कमरों वाला फ्लैट जिसमें सबसे सुन्दर है बड़ी बाल्कनी जहाँ से सुदूर तक विहंगम देखा जा सकता है . यहाँ सभी इमारतों में शीशे के पर्दे हैं जिनके आरपार स्पष्ट देखा जा सकता है . मैं जहाँ बैठी हूँ मेरा व अदम्य का कमरा है . इसमें भी बड़ी सी खिड़की जिसे खिड़की की बज़ाय दरवाजा कहना अधिक उपयुक्त है . पलंग पर लेटे या बैठे मैं शीशे के पार सुदूर सब कुछ देख सकती हूँ . 

कमरे में चांद
 एक साथ कितने रंग 
मेरे सामने बड़ा सा पार्क और चर्च है .पार्क ऊँचे सघन वृक्षों से घिरा हुआ है .वृक्ष भी कितने प्रकार और कितने रंगों के . हरियाली में ही हल्की से गहरी तक कितनी छायाएं हैं .. वृक्षों का वैभव तो देखते ही बनता है . कोई इतना सघन कि धूप पत्तों के बीच से नीचे उतरने की कोशिश करके हार जाती है . घनी टहनियों में गुँथे हुए से पत्ते धूप को हाथों हाथ या कहें आड़े हाथ लेकर लौटा देते हैं .अधिकतर वृक्ष सदाबहार हैं .उनके गहरे हरे और चिकने पत्ते जैसे हमेशा ऐसे ही बने रहने का वरदान लेकर आए हैं . पर कहीं कुछ पेड़ सारे पत्ते उतार कर अवधूत की तरह भी जमे हैं . 
सघन विरल का साथ 

बेशुमार कलियाँ जो फूल बनने तैयार हैं .

किसी पेड़ के पत्ते , हर हाल कुर्सी से चिपके रहने की लालसा वाले नेताओं की तरह ,सूख जाने पर भी टहनियों में अटके हुए हैं . कोई पेड़ पतझड़ में लाल हुआ जा रहा है तो कोई पीला . किसी पेड़ की टहनियों में पत्तों को हटाकर छोटी छोटी बेशुमार कलियाँ आकर जम गई हैं और कुछ ही दिनों में हल्के गुलाबी .फूलों में बदल जाने वाली हैं . कहीं छोटी छोटी झाड़ियाँ फूलों की लड़ियाँ गला में डाले इतराती हुई लगती हैं .

सामने छोटी सी नदी है जो शहर के केन्द्र 

तक पहुँचते पहुँचते समुद्र हो जाती है .  

नदी किनारे खूबसूरत जोड़ा 

नदी के किनारे पेड़ों से घिरा बहुत ही हराभरा मैदार है .नदी के साथ साथ सुन्दर फुटपाथ हैं जहाँ इक्का दुक्का  लोग टहलते दौड़ते मिल जाते हैं . भीड़ नहीं हैं क्योंकि जगह ज्यादा और लोग कम हैं . नदी में नियमित रूप से स्टीमर चलते हैं ,जिन्हें फेयरी कहा जाता है . पैरामेटा से सिटी तक जाने के लिये यह एक बहुत सुन्दर सुहाना साधन है . 


सजने के अजब ढंग

यहाँ सबसे 

फेयरी 

अच्छी बात है सड़क के साथ फुटपाथ जो पूर्ण सुरक्षित है . बस सड़क पार करने के लिये दस से पन्द्रह सेकण्ड रुककर सिग्नल के दौड़ते हुए आदमी के हरे होने की की प्रतीक्षा करनी है . फिर पार करने के बीच भले ही सिग्नल लाल होगया हो , गाड़ियाँ तब तक रुकी रहती हैं जब तक पार करने वाला सड़क पार न कर जाय . बिना सिग्नल निकलने वालों पर भारी जुर्माना लगता है चाहे वह गाड़ी वाला हो या पैदल चलने वाला . तो सही व्यवस्था लोगों की जागरूकता से कहीं अधिक सजा का डर है . फिर लोग नियम से चलने के आदी हो ही जाते हैं . राज्य कानून सजा की आवश्यकता है ही इसलिये .तभी स्पेंसर ने राज्य को बुराई मानते हुए भी आवश्यक कहा है .

सोमवार से शुक्रवार यहाँ दिनचर्या एक सी है . सुबह चाय नाश्ते के बाद अदम्य को स्कूल छोड़कर श्वेता मयंक का ऑफिस वर्क शुरु हो जाता है . मैं टहलने के लिये आधे से एक घंटा पार्क में या नदी किनारे निकल जाती हूँ . जहाँ अपने देश के बहुत से लोग मिलते हैं . संवाद न हो तो भी स्वदेशी होने का एहसास हो जाता है . वातावरण काफी साफ सुथरा और सुन्दर है . शनिवार रविवार अवकाश का होता है . आसपास ही मयंक और श्वेता के कई मित्र हैं . अमर , शिवम् ,सौरभ , रवि आदि ..ये दोनों दिन अक्सर इन्हीं मित्र-परिवारों के साथ खाते पीते हँसते खेलते गुजरते हैं . और तब सब भूल जाते हैं कि हम अपने देश में नहीं हैं ....

जारी.......

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति का अति मनोहारी वर्णन ! विदेश में रहकर अपने देश की याद आना स्वाभाविक है, सुंदर बगीचे, सारी सुविधाएँ और आराम होने पर भी अपना वतन तो अपना ही है।

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  2. परिवार और बच्चों का सानिध्य हमेशा उल्लास देता है बहुत सुंदर सराहनीय आलेख ।

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  3. बहुत सुन्दर शब्द चित्र. पेड़ों की सुन्दरता का वर्णन पढ़कर लगता है कि कोइ वनस्पति शास्त्री भी इस प्रकार इन्हें नहीं निहारता होगा. वहीं दूसरी और नदियों की चर्चा मानो कोइ पर्यावरणविद की आत्मा आपके भीतर स्थित हो. रास आ गया है यह प्रवास आपको. आनंद लें और हमें भी आनंदित करें अपने अनुभव से.

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  4. आप भी पूरे मन से पढ़ते हैं इसलिये आपकी प्रतीक्षा रहती है । ब्लाग को इसी बहाने सक्रिय रखने की कोशिश कर रही हूं ।

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