तैरता है ,लहरों में ,
बतखों और पनडुब्बियों की तरह
दौड़कर आने से लाल हुआ अपना चेहरा
धो डालता है ठंडे पानी में ,
खेलता है आँखमिचौनी .
रुई के फाहों जैसे बादलों के साथ
आसमान जब उतर आता है नदी में ,
चाँद भी नदी में उतरकर
झूलता है लहरों के पालने में .
भूलता है ,कि चलना आसान नही है
नदी हुए आसमान में .
डगमगाता है ,फिसलता है ,
गीला होगया चाँद .थाम लेती हैं उसे
पानी पर झुकी बेंत की टहनियाँ
छकाते हैं मछलियों को .
जो घेरकर उन्हें ,
जो घेरकर उन्हें ,
मचलती हैं झपटती हैं .
पॉपकार्न या लाई समझकर .
मुस्कराते हैं जकरान्दा के पर्पल फूल
पॉपकार्न या लाई समझकर .
मुस्कराते हैं जकरान्दा के पर्पल फूल
लहर लहर बहता भी है आसमान
जब उतर आता है नदी में .
बतखें ,पेड़ ,फूल ,मछलियाँ
खुश होते हैं आसमान छूकर
इसे आसमान का नदी होना कहें
बताता है यही
कि कितना उदार और निर्मल है
नदी का हृदय .
समा लेता है हर रंग .
सिन्दूरी सफेद ,हरा ,
नीला या फिर सुर्मयी
वाह ! प्रकृति का मनोहारी वर्णन ! नदी में समाया है आसमान और आसमान में भी है एक आकाश गंगा, धरती और गगन का यह साथ ही बनाये हुए इस कायनात को सुंदर आशियाना !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अनीता
हटाएंएक सहज,सरल दृश्य आंखों के आगे आ गया
जवाब देंहटाएंरचना सार्थक हुई दीदी .
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना बुधवार ७ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत धन्यवाद रेणु जी .
जवाब देंहटाएंआसमान जब उतर आता है नदी में ,
जवाब देंहटाएंचाँद भी नदी में उतरकर
झूलता है लहरों के पालने में .
भूलता है ,कि चलना आसान नही है
नदी हुए आसमान में .
डगमगाता है ,फिसलता है ,
गीला होगया चाँद .
थाम लेती हैं उसे
पानी पर झुकी बेंत की टहनियाँ
वाह!!!!
बहुत ही मनभावन सृजन
सुन्दर रमणीय दृश्य चित्र ।
धन्यवाद सुधा जी
हटाएं...
जवाब देंहटाएंथाम लेती हैं उसे
जवाब देंहटाएंपानी पर झुकी बेंत की टहनियाँ
सुन्दर शब्द चित्र खींचती रचना। .... अभिनन्दन आदरणीया !
जय श्री कृष्ण जी !
धन्यवाद तरुण जी
हटाएंजब नदी के विशाल हृदय में आसमान प्रतिबिंब रूप में उतरता है तो उसके साथ बादल और चाँद भी अपनी मोहक अठखेलियों के साथ नदी के निर्मल जल में अपने बहुरंगी अस्तित्व को घोल कर नये रूप में प्रकट होते हैं।जिसके आभासी स्पर्श से बतखें ,पेड़ ,फूल ,मछलियाँ भावविभोर होते हैं तो नदी इस आनन्द की मौन साक्षी बनती है। कितना मनमोहक है आसमान का नदी हो जाना ---
जवाब देंहटाएंकविता का मर्म समझकर इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद रेणु जी
हटाएंअहा !!! कितनी सुंदर रचना । जब आसमाँ उतरता है नदी में ..... तारों का प्रतिबिंब छकाता है मछलियों को .... किसी कवि की कल्पना का प्रतिबिंब है ये रचना ।बहुत पसंद आई ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका
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