केवल दूरी नहीं काफी
दूरियों
के लिये .
नज़दीक होकर भी
बढ़ जाती हैं ,दूरियाँ
जब होती है बीच में ,
व्यस्त चौड़ी सड़कें .
सड़कों
पर अविराम यातायात...
ताव
में भरे हुए से तेजी में गुजरते वाहन
निष्ठुर ,अधीर ,अपरिचित चालक
दुर्गम
हो जाती है
घर से
घर तक की दूरी ..
तब असंभव
होता है सोचना भी
बिना
किसी बड़ी योजना के
एक साथ
बैठकर चाय पीने की बात .
सड़कों
को बीच से गुजरने देना
स्वीकार
लेना है दूरियों को ..
दूरियों
की आदत हो इससे पहले
तुम
बनालो एक ऐसा घर
कि तुम
तक पहुँचने
पार
न करनी पड़े
कोई
चौड़ी व्यस्त सड़क ,चौराहा .
पैदल
ही पहुँच जाऊँ .
आराम
से टहलते हुए .
अचानक
,चाहे जब .
बिता
सकूँ कोई भी दोपहर, शाम
तुम्हारे
साथ ,हँसते बोलते ,
बाँटते
हुए अपनी उलझनें /खुशियाँ
बिना
किसी योजना या तैयारी के.
इन्तज़ार
न करने पड़े
शनिवार रविवार का
मत गुज़रने दो
किसी व्यस्त सड़क और बाजार को
दो घरों के बीच .
( परिवर्तित ,पुनः प्रकाशित )
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (22-12-2022) को "सबके अपने तर्क" (चर्चा अंक-4629) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सुन्दर रचना यथार्थ को अभिव्यक्ति देती हुई,सादर
जवाब देंहटाएंदिल से दिल मिले रहे तो फिर दूरियां- दूरियां नहीं रहती
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
शनिवार रविवार का
जवाब देंहटाएंमत गुज़रने दो
किसी व्यस्त सड़क और बाजार को
दो घरों के बीच ... बहुत सारगर्भित भाव । सुंदर रचना ।
शनिवार व इतवार का इंतज़ार करने वाली एक पूरी पीढ़ी है आज महानगरों में, जब बच्चे आते हैं और घर में रौनक़ हो जाती है, दिल को छूने वाली रचना !
जवाब देंहटाएंआभार आपका क्ष
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