गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

सही पता

बेघर , बंजारा मन

भटकता है दिशाहीन  

यहाँ , वहां , जाने कहाँ ,कहाँ

नहीं है जब कोई स्थाई पता .

सही पता होता है तो

आता रहता है अखबार, पत्रिकाएं.

दस्तक देता रहता है दरवाजे पर

कोई न कोई अपना सा .

पोस्टमैन सरका जाता है किवाड़ों के नीचे से

कोई बड़ा सा लिफाफा .

प्रतीक्षित पत्र ..

पत्र जो खिड़की पर गूँजते हैं  

चिड़ियों के कलरव जैसे .

भान कराते हैं , 

सबेरा होने का .

पत्र में छुपे फूल महका देते हैं सारा आँगन

जैस महकता है मोगरा सुबह सुबह .

कभी महका भी करते थे शब्द , इसी तरह

जब सही पता हुआ करता था .

साँसों का तेज स्पन्दन .

या बुझती प्रतीक्षा की चुभन से

उमड़ आए आँसू  


एहसास कराते थे ज़िन्दा होने का .

चल पड़ती थी रुकी हुई सी जिन्दगी फिर से ..

समझ आता है

कि कितना ज़रूरी है

अपने होने के लिये

एक सही पते का होना .


ला-पता होना

वंचित हो जाना है ,

अपनी ज़मीन से ,

अपने आपसे .

11 टिप्‍पणियां:

  1. अकेलेपन के दर्द का अहसास कराती एक मार्मिक रचना !

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०१-०१-२०२३) को 'नूतन का अभिनन्दन' (चर्चा अंक-४६३२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०१-०१-२०२३) को 'नूतन का अभिनन्दन' (चर्चा अंक-४६३२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. मन का भटकना पते को अस्थाई कर देता है। कभी ना कभी हम सभी अपने स्थाई पते की खोज में होते हैं। हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति। सादर प्रणाम दीदी।

    जवाब देंहटाएं
  5. समझ आता है
    कि कितना ज़रूरी है
    अपने होने के लिये
    एक सही पते का होना .
    सही सत्य का उद्घाटन!--ब्रजेन्द्र नाथ

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी इस रचना ने तो ब्लॉग को ही महका दिया है आ. गिरिजा जी! ... सुन्दर रचना!

    जवाब देंहटाएं