“ओ माँ ..आज तो बहुत थक गई .“
अंकिता
ने आते ही बैग एक तरफ रखा और सोफा पर ही पसर गई .
विमला ने
एक ममत्त्व भरी निगाह से बहू को देखा ,पानी का गिलास ले आई और चाय चढ़ाने लगी . यह
रोज की बात है अंकिता ऑफिस से आकर यही कहती है . विमला हैरान होती है .वातानुकूलित
टैक्सी में आना-जाना . वातानुकूलित कक्ष में ही शानदार कुर्सी पर बैठकर काम करना .
( एक बार अंकिता अपने ऑफिस के वार्षिकोत्सव में विमला को भी लेगई थी ) घर में भी
कोई तनाव नही .न व्यवहार का न विचारों का .कामों में पीयूष बराबर हाथ बँटाता है .
जब से वह आई है अंकिता को न किचन की चिन्ता करनी पड़ती है न पीहू की .
“अभी इस उम्र में इतनी थकान तो नहीं होनी
चाहिये. एक बार डाक्टर को दिखालो .”---.विमला ने अपने आशय को
कुछ बदलकर प्रकट किया .
“ थकान काम और भागदौड़ से है माँजी !
आपने अभी यहाँ का ट्रैफिक नहीं देखा ..फिर ऑफिस में क्या कम काम है
..डाक्टर के पास जाओ तो
कहता है आराम करो ..अब आराम से तो काम नहीं चलता ना !.”
विमला को
याद आता है कि किस तरह दिनभर साँस लेने की फुरसत नहीं मिलती थी . घर में सास जी
सहित छह लोग थे . सबका नाश्ता खाना बनाकर नौ बजे स्कूल के लिये निकल जाती थी बस से
आधा घंटा लगता था और मुख्य सड़क से स्कूल तक पैदल पन्द्रह मिनट ..शाम को पाँच बजे
तक लौटती थी तब चाय के बहाने पल दो पल बैठने मिल जाते थे और फिर वहीं रोज के काम .
रात नौ-दस बजे जाकर फुरसत मिलती थी . उसका नौकरी करना एक आवश्यकता थी . पीयूष के
पिता का कोई निश्चित रोजगार नहीं था .उसकी सर्विस ही परिवार के लिये नियमित आय का
एमात्र जरिया थी . आराम करने का न तो समय था, न ही छूट . पर ऐसा व्यक्त करना भी
जैसे गुनाह था .
"ज्यादा
परेशानी है तो छोड़दो नौकरी ...घर बैठो ."पीयूष के पिता कह देते .
अंकिता
के लिये नौकरी आवश्यक नहीं ,आत्मनिर्भर होने के एहसास के लिये है .(चाहें तो पीयूष
के शानदार पैकेज में बहुत आराम के साथ जीवन निर्वाह हो सकता है) . वह भी कितने
आराम से ...बिस्तर छोड़ने से लेकर ऑफिस जाने तक ,चाय के साथ न्यूज देखने और खुद की
तैयारी के अलावा कोई काम नहीं होता अंकिता के लिये . सफाई और खाना बनाने वाली
सहायिकाओं को जरूरी निर्देश देना ..चीजों को व्यवस्थित करना ,वाशिंग मशीन से कपड़े
निकालकर फैलाना ..नीटू को तैयारकर खिला पिला ..प्लेग्रुप में छोड़कर आना और वहाँ
से लेकर आना ..बिग बास्केट से आए सामान को यथास्थान रखना आदि सारे काम खुद विमला
ने सम्हाल लिये हैं . फिर भी जाते समय हमेशा बहुत हड़बड़ाहट रहती है . कभी मैच की
चुन्नी नहीं मिलती तो कभी सलवार .. कभी कंघा गायब तो कभी एक चप्पल . इन सबकी तलाश
में पूरा कमरा अस्तव्यस्त हो जाता है . अलमारी को सारे कपड़े उल्टे पुल्टे . ऐन
वक्त पर वह घड़ी देखती है –अरे बाप रे ..और फिर तूफान आ जाता है जैसे उसके लेट
होने में उसका नहीं टीवी , अखबार , और घड़ी का दोष है .
चाय पीकर
अंकिता ने कप वहीं छोड़ा और कमरे में जाकर पीहू के साथ लेट गई . विमला फ्रिज़ में
से सब्जियाँ निकालने लगी . रजनी आती होगी . आते ही पूछेगी क्या बनाना है अम्मा .
विमला खड़ी होकर सब्जी या अन्य चीजें बनवाती है .वह कम से कम जब तक यहाँ है बेटा
को उसकी मनपसन्द चीजें बनवाती रहे .
"मम्मी
,अंकू कहाँ है ?"-–पीयूष ने दरवाजे के अन्दर पाँव रखते ही पूछा .
"आगया
बेटा ! अंकू अपने कमरे में है . शायद आराम कर रही है ."
पीयूष ने
देखा अंकिता सिर पर पट्टी लपेटे है . घबराए स्वर में पूछा –"क्या हुआ ?
"थोड़ा
सिर भारी है ..पीहू अलग परेशान कर रही है ."
"पीहू को
मम्मी के पास छोड़ दो ना ! मम्मी !"--–कुछ उत्तेजना के लहजे में पीयूष ने माँ को
पुकारा—
"मम्मी
कौनसे काम लेकर बैठी हो ?"
"थोड़े से
लड्डू बना लूँ तुम लोगों के लिये ..उसी की तैयारी कर रही हूँ .दिन में तो पीहू मेरे पास..."
"अरे वह
सब छोड़ो ...जरा पीहू को देखलो .."
विमला
पोती को खिलाते हुए सोच रही थी कि उसके काम का महत्त्व न तब था न अब ..
सोचने वाली बात तो है, पर जो काम करता है कर सकता है, उसी को काम मिलता है
जवाब देंहटाएंमन में गहरे उतरती कहानी। एक स्त्री परिस्थितियों के कारण परिवार की दोहरी जिम्मेदारी का बोझ उठाती है पर उसके त्याग ,समर्पण और भलमनसाहत को वही लोग नहीं अनदेखा कर देते हैं ,इस पीड़ा को सहना आसान नहीं।
जवाब देंहटाएंसस्नेह प्रणाम दी।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसच है .. पर कभी बहुत खलता है ऐसे महत्वहीन जीवन जब बड़े तो बड़े, बच्चे भी बेपरवाह हो जाते हैं तब अपना ही मन पूरे जीवन की गिनाने लगता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक एवं लाजवाब कहानी ।