(1)
बारिश की बूँदें,
पत्तों पर पडीं ऐसे-
प्रसाद की रेबडी,
हथेली पर अम्मा रख देती हैं जैसे ।
(2)
बारिश की पहली फुहार।
कई दिनों के फाकों के बाद ,
रमुआ को मिली ,
पहली पगार।
(3)
लगते हैं ऐसे,
ये छींटे बौछार के।
बोले किसी ने हैं,
दो बोल प्यार के ।
(4)
वह पौधा था अभी तक,
रूठा और मुरझाया।
खिल गया..
बूँदों ने कानों में
कुछ तो कहा ।
(5)
आसमां के धरती को,
स्नेहमय पत्र,
बाँट रहे बादल,
यत्र-तत्र-सर्वत्र ।
(6)
बादलों की डायरी में ,
ऐसी कहानी --
कि प्यासों की भीड है ,
और चुल्लू-भर पानी ।
(7)
तपती धरती पर
बूँदों का असर कुछ ऐसा पडा,
कि भूख से बिलबिलाते बच्चे को ,
रोटी का एक टुकडा ।
यहाँ तो बारिश का नामोनिशान ग़ायब है!
जवाब देंहटाएं--
आपकी ये कविताएँ पढ़कर मन भीज गया!
लगते हैं ऐसे,
जवाब देंहटाएंये छींटे बौछार के।
बोले किसी ने हैं,
दो बोल प्यार के ।
इन पंक्तियों ने बहुत प्रभावित किया । काम्बोज
आभार आदरणीय
हटाएंबादल आते हैं और ठहरते हैं, फिर निकल पड़ते हैं कहीं ओर जाने के लिए...
जवाब देंहटाएंबादलों की डायरी में किसी पन्ने पर मेरे शहर का नाम भी होगा।
दीपाली
प्रिय दीपाली जी , कलम नाम से ब्लाग की पहली पोस्ट पर यह टिप्पणी आपकी है यह आपकी प्रोफाइल में दिये ई मेल से जान पाई हूं. बहुत ही खुशी हुई. शुक्रिया.
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