बरसों से आँगन में मौजूद यह नीम का पेड़ कई मुश्किलों का घर होने के बावजूद हमारे साथ है । मुश्किलें--जैसे कि हर समय कचरा होते रहना । पक्षियों का कुछ न कुछ (हड्डी,माँस,कुतरे फल आदि )गिराते रहना ।बरसात में तो और भी कई दिक्कतें होतीं हैं ।पति इसे कटवाने के विरोधी इसलिये रहे कि इसे मयंक के जन्म के साल ही (1985) सास जी ने अपने हाथों से लगाया । यानी यह मयंक की उम्र का है . बच्चे ,खास तौर पर गुल्लू(प्रशान्त)इसे कटवाने का ही नहीं छँटवाने तक का विरोध इसलिये करता रहा है कि पेड़ कट गया तो इतनी सारी चिडियों व गिलहरियों का आश्रय मिट जायेगा ..सबसे बड़ी मुश्किल पड़ोस की छत और आँगन में पत्तों के झरने से जब तब उत्पन्न होते तनाव की है...पर क्या करूँ , बेवशी अनुभव तो करती हूँ पर यह नीम हमारे जीवन का अहम् हिस्सा है । कुछ इस तरह -----
मेरे आँगन नीम,
धूप में छतरी जैसा है ।
गर्मी धूल प्रदूषण में यह,
प्रहरी जैसा है ।
चिडियाँ करतीं यहाँ बसेरा ।
गिलहरियों का लगता फेरा ।
कौवे तोते करें किलोलें,
गूँजे हर पल आँगन मेरा ।
देता रहता पता हवा का ,
खबरी जैसा है ।
पत्ता-पत्ता बतियाता है ।
टहनी-टहनी से नाता है ।
छाया माँ के आँचल सी है ,
सिर पर हाथ पिता का सा है ।
कितना कुछ बाँधे ,
दादी की गठरी जैसा है ।
कितना ही कचरा फैलाए।
पतझड़ में पत्ते बरसाए ।
बसा हुआ है यह साँसों में,
हरियाली है अहसासों में ।
सबसे अच्छी ,
अपने घर की देहरी जैसा है ।
मेरे आँगन नीम ,
धूप में छतरी जैसा है ।
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मेरे आँगन नीम,
धूप में छतरी जैसा है ।
गर्मी धूल प्रदूषण में यह,
प्रहरी जैसा है ।
चिडियाँ करतीं यहाँ बसेरा ।
गिलहरियों का लगता फेरा ।
कौवे तोते करें किलोलें,
गूँजे हर पल आँगन मेरा ।
देता रहता पता हवा का ,
खबरी जैसा है ।
पत्ता-पत्ता बतियाता है ।
टहनी-टहनी से नाता है ।
छाया माँ के आँचल सी है ,
सिर पर हाथ पिता का सा है ।
कितना कुछ बाँधे ,
दादी की गठरी जैसा है ।
कितना ही कचरा फैलाए।
पतझड़ में पत्ते बरसाए ।
बसा हुआ है यह साँसों में,
हरियाली है अहसासों में ।
सबसे अच्छी ,
अपने घर की देहरी जैसा है ।
मेरे आँगन नीम ,
धूप में छतरी जैसा है ।
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गिरिजा जी बहुत सुन्दर और सार्थक कविता है । पेड़ हमारे जीवन की धड़कन हैं । उनके साथ परिवार के व्यक्तियों जैसी आत्मीयता होना स्वा भाविक है ।-रामेश्वर काम्बोज
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कविता!
जवाब देंहटाएं--
कुछ देर को लगा कि
मैं भी इसी नीम की छाँव में बैठा हूँ!