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मान्या का लिखना तो देखो
मान्या का लिखना तो देखो
काम उसे कितना तो देखो
पेन किसी का हाथ लगा है
यहां वहां घिसना तो देखो
गड़बड़ गोल मकड़जालों सी
गुड़िया के गुच्छे बालों सी
आड़ी-तिरछी सी रेखाऐं
झरनों और नदी नालों सी
पढ़ो पढ़ सको नई इबारत
समझो इसे न सिर्फ शरारत
बचपन की चंचल कविता है
कोमल सी मासूम कहावत
कापी से क्या होगा
उसको छत भी पड़े न पूरी
आंगन चबूतरा लिख डाले
फिर भी बात अधूरी
रचदी हें सारी दीवारें
मम्मी की साड़ी सलवारें
पीठ खुली पापा की देखी
पल में खींची कई कतारें
चाचा की जो मिली डायरी
नन्हे हाथों नई शायरी
आसमान मांगेगी एक दिन
तारे-चांद लिखेगी अनगिन
लिखने की सही शुरुआत , जहाँ जगह मिले लिख डालो ।इस उम्र पर सारे सपने कुर्बान !काम्बोज
जवाब देंहटाएंआपका कथन सृजन का सम्मान है। बहुत धन्यवाद
हटाएंमान्या की लिखावट ने तो बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंपेंटिंग रच डाली!
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मान्या को इस सुंदर पेंटिंग-सा प्यार!
मनभावन होने के कारण
जवाब देंहटाएं"सरस पायस" पर हुई "सरस चर्चा" में
इन्हें देख मन गाने लगता!
शीर्षक के अंतर्गत
इस पोस्ट की चर्चा की गई है!
मान्या जैसे जैसे बड़ी होगी, अपनी रेखाओं और आपके लिखे का अर्थ जानेगी । बहुत प्यार
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत खुशी हुई कि तुमने कविता पढ़ी।
हटाएंपढ़ के तो देखो😘
जवाब देंहटाएंब्लाग पर आईं, कविता सार्थक हुई दीदी। आभार
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