( हिन्दी ) माँ
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मातृभाषा माँ है ।
माँ ही समझ सकती है
औरों को भी समझा सकती है
ह्रदय की हर बात
आसानी से ।
माँ ,जो दुलारती है अपने बच्चे को ।
रोने पर ....सोने पर--- जगाती है ,
दिखाती है राह , कही खोने पर ।
छोटा नही होने देती अपने वश भर
अपनी सन्तान को-कभी ,... कहीं भी ।
मातृभाषा, धरती है ।
धरती के उर्वरांचल में ही
उगती हैं, लहलहाती हैं
सपनों की फसल ।
वन-उपवन, पहाड--नदियाँ
समुद्र और खाइयाँ
टिके हैं आराम से ।
धरती के वक्ष पर ।
धरती पर ही तो टिका सकता है कोई भी
अपने पाँव मजबूती से ।
और तय कर सकता है लम्बी दूरी
मातृभाषा, अपने घर का आँगन
जहां कोने--कोने में रची-बसी है
गभुआरे बालों की खुशबू ।
दूधिया हँसी की चमक
अपना आँगन , जहाँ सीखते हैं सब ,
सर्वप्रथम, बोलना , किलकना
सर्वप्रथम, बोलना , किलकना
चलना , थिरकना ।
दूसरी भाषा के आकाश में
पंछी उडतो सकता है,लेकिन खाने--पीने के लिये
बैठने--सोने के लिये
बैठने--सोने के लिये
उसे उतरना होता है जमीन पर ही ।
हिन्दी हमारी मातृभाषा,
हमारी अस्मिता और सम्मान
हमारी अस्मिता और सम्मान
सही पता और पहचान ।
पत्र मिला करते हैं हमेशा
सही पते पर ही
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंअच्छी पंक्तिया सृजित की है आपने ........
एक बार इसे जरुर पढ़े, आपको पसंद आएगा :-
(प्यारी सीता, मैं यहाँ खुश हूँ, आशा है तू भी ठीक होगी .....)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_14.html
बहुत सटीक विवेचन ...अच्छी रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंअच्छी पंक्तिया ........
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग कि संभवतया अंतिम पोस्ट, अपनी राय जरुर दे :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
कृपया विजेट पोल में अपनी राय अवश्य दे ...
हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंbahotachche.
जवाब देंहटाएंमातृभषा पर इतनी अच्छी कविता प्रस्तुत करने करने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 12 -10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/