सोमवार, 13 सितंबर 2010

मातृभाषा


( हिन्दी ) माँ

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मातृभाषा माँ है ।
माँ ही समझ सकती है
औरों को भी समझा सकती है
ह्रदय की हर बात
आसानी से ।
माँ ,जो दुलारती है अपने बच्चे को ।
रोने पर ....सोने पर--- जगाती है ,
दिखाती है राह , कही खोने पर ।
छोटा नही होने देती अपने वश भर
अपनी सन्तान को-कभी ,... कहीं भी ।

मातृभाषा, धरती है ।
धरती के उर्वरांचल में ही
उगती हैं, लहलहाती हैं
सपनों की फसल ।
वन-उपवन, पहाड--नदियाँ
समुद्र और खाइयाँ
टिके हैं आराम से ।
धरती के वक्ष पर ।
धरती पर ही तो टिका सकता है कोई भी
अपने पाँव मजबूती से ।
और तय कर सकता है लम्बी दूरी

मातृभाषा, अपने घर का आँगन
जहां कोने--कोने में रची-बसी है
गभुआरे बालों की खुशबू ।
दूधिया हँसी की चमक
अपना आँगन , जहाँ सीखते हैं सब , 
सर्वप्रथम, बोलना , किलकना
चलना , थिरकना
दूसरी भाषा के आकाश में
पंछी उडतो सकता है,लेकिन खाने--पीने के लिये 
बैठने--सोने के लिये
उसे उतरना होता है जमीन पर ही ।

हिन्दी हमारी मातृभाषा, 
हमारी अस्मिता और सम्मान 
सही पता और पहचान ।
पत्र मिला करते हैं हमेशा
सही पते पर ही

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति,
    अच्छी पंक्तिया सृजित की है आपने ........

    एक बार इसे जरुर पढ़े, आपको पसंद आएगा :-
    (प्यारी सीता, मैं यहाँ खुश हूँ, आशा है तू भी ठीक होगी .....)
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_14.html

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  2. अच्छी पंक्तिया ........

    मेरे ब्लॉग कि संभवतया अंतिम पोस्ट, अपनी राय जरुर दे :-
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html
    कृपया विजेट पोल में अपनी राय अवश्य दे ...

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  3. मातृभषा पर इतनी अच्छी कविता प्रस्तुत करने करने के लिए आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 12 -10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

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