रविवार, 21 अगस्त 2011

मान्या और विहान




नन्हे राजा
नयना बाँके-बाँके
कोटर में से
कोयल के शिशु झाँके
नदी नहायी धूप
चाँदनी फाँके
कितने सारे फूल
भोर ने ,
हर टहनी पर टाँके
लुढक गई है गेंद
रात की काली वाली।
जाने दो,
झुनझुना बजाती
डाली-डाली


मेरी गोदी चाँद सलौना
नही चाहिये और खिलौना
साथ इसी के खेलूँगी मैं,
सौ सौ नखरे झेलूँगी मैं
मेरा राजा भैया है
मेरी जेब रुपैया है ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाइयाँ!

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  2. गिरिजा जी!
    कोइ रूठ गया था चंद खिलौना लेने को और कोइ चाँद सा भैया पाकर खुश है.. बहुत ही प्यारी सी कविता!!

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  3. वाह बहुत सुन्दर चित्रण किया है।
    कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें।

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  4. वाह ! क्या बात है !
    जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  5. बालक मन से लिखी गई रचना। बेहद गुदगुदाने वाली बालसुलभ भावनात्मक कविता।

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