(1)
जाने क्यूँ वीराना ही
अब सच्चा लगता है
खूब पकाया , धीरज का घट
कच्चा लगता है ।
बडे , अनुभवी कहलाते थे ,
जब थे गाँवों में ।
शहर में आकर हर अनुभव
एक बच्चा लगता है ।
जाने कैसी दूरी लाती
नजदीकी उनकी
इससे तो यादों में रोना
अच्छा लगता है ।
किया किसी ने छल हमसे
विश्वास नही होता
खुद ही दिल के हाथों
खाया गच्चा , लगता है
(2)
मौसम बदल रहा है हर शाम क्या करें !
उपवन उजड रहा है सरेआम क्या करें !
है कौन किसके आगे यह जंग सी छिडी है !
हरसूँ सुनाई देता कोहराम क्या करें !
बैठे रहे वो अब तक हाथों पे हाथ रख कर !
अब रोपते हथेली पे आम ,क्या करें !
कारण कोई न समझे तह तक कोई न जाए !
सब देखते हैं केवल अंजाम क्या करें !
वोटों की भीख माँगी कितने करार करके
भूले जो जीत कर वो आवाम क्या करे !
निर्माण में भवन के बस एक ईंट रख कर
अखबार में छपाते वो नाम क्या करें !
काँधों पे जिनके सदियों से यह जमीं टिकी है,
वे ही सदा रहे हैं गुमनाम क्या करें !
(3)
खबरों के लिये जुर्म कुछ संगीन चाहिये ।
हलचल मचाने वाले कुछ 'सीन' चाहिये ।
अन्दर भले लिखा हो काला -सफेद कुछ भी ,
पर आवरण सभी को रंगीन चाहिये ।
मतभेद और विभाजन हम में रहा सदा से
हाँ एकता को पाक या फिर चीन चाहिये ।
चलते रहे हैं लेकर वो साथ में हमें भी
मीठे के साथ कुछ तो नमकीन चाहिये ।
सुख कर रहे हैं अपनों को आदमी से दूर
लाने करीब माहौल गमगीन चाहिये ।
तिकडम से कामयाबी मिलती है चन्द दिन ही
कुछ कर दिखाने ईमानो-दीन चाहिये ।
चरित्र गहरा और सशक्त हो, नींव सा..
जवाब देंहटाएंसार्थक पंक्तियाँ..
गिरिजा जी!!
जवाब देंहटाएंसाखी पर तो हमने भी बहुत लंबी चौड़ी हांकी है, पता नहीं वो समीक्षा थी या नहीं.. आपने जो भी लिखा है वो किसी भी श्रेणी में आये, कविता की श्रेणी में तो है ही..
दो और तीन नंबर की गज़लें रेडीमेड कपड़ों की तरह हैं.. सुन्दर और अच्छी.. सिर्फ जरूरत है थोड़ी सी फिटिंग दुरुस्त करने की.. थोड़ा सा रद्दो-बदल और एक बेहतरीन गज़ल बन सकती है!! पहली कविता/गीत भी बहुत अच्छी है.. मगर एक साथ तीन कविताओं से बेहतर तो ये होता कि एक एक करके प्रकाशित करती..पढ़ने वाले को फोकस्ड होकर प्रतिक्रिया लिखने में मदद मिलती!!
बहुत सुन्दर!!
जाने कैसी दूरी लाती
जवाब देंहटाएंनजदीकी उनकी
इससे तो यादों में रोना
अच्छा लगता है ।
बहुत खुबसूरत रचना
बहुत सुन्दर रचना। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआप सबका शुक्रिया । सलिल जी आपकी बात बिल्कुल सही है । पहले भी आपने ऐसा ही कुछ कहा था । आपकी प्रतिक्रिया कई स्तरों पर नया रास्ता दिखाती है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसार्थक सुंदर रचना,बेहतरीन पंक्तियाँ ,....
जवाब देंहटाएंwelcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....
गिरजा जी,...आपका फालोवर बन रहा हूँ,आप भी बने,मुझे हार्दिक खुशी होगी,...आभार
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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जवाब देंहटाएंप्रणाम !
अवश्य बहुत विलंब से पहुंचा हूं…
ग़ज़ल कहलाने के लिए रचनाओं का मीटर में होना ज़रूरी होता है…
रदीफ़ हो न हो , क़ाफ़िये मिलना ज़रूरी होता है…
आप बहुत क़रीब हैं …
अच्छा लिखा है … थोड़ी-सा और ध्यान के साथ श्रेष्ठ ग़ज़लकारों की ग़ज़लों को पढ़ना है … बस! :)
शुभकामनाएं !