शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

'कुछ ठहरले और मेरी जिन्दगी '

बावज़ूद इसके कि हम जैसी चाहते हैं ज़िन्दगी अक्सर वैसी नही होती उसे बलात् ही खूबसूरत मानने , बनाए रखने या फिर वैसी कल्पना करने से पीछे नही हटते । मेरी कविताएं भी मेरे ऐसे ही कुछ प्रयासों का परिणाम रही हैं । यह गीत--संग्रह 'कुछ ठहरले और मेरी जिन्दगी' ऐसी ही कुछ रचनाओं का संकलन है जो अभी-अभी ज्योतिपर्व प्रकाशन से आया है । 
कहते हैं कि कविता के लिये संवेदना व भावों की तीव्रता ही पहला आधार है । जो लोग पीडा की नदी में डूब कर कविता लिखते है वे ही पूर्ण अभिव्यक्ति का किनारा पाते हैं । ऐसी नदी से गुजरते हुए ही अनेक कवियों ने कालजयी कविताएं लिखी हैं और लिख रहे हैं ,लेकिन अपने इन गीतों के लिये मेरा ऐसा दावा बिल्कुल नही है । विशेषकर जब आज की विसंगतियों व पीडाओं को प्रखरता से व्यक्त करने में मुक्त-छन्द अधिक सफल और प्रभावशाली सिद्ध हो रहा है । मैंने छन्दमुक्त रचनाएं भी लिखी हैं जिनमें से कुछ आपने यहाँ पढी भी हैं ( संग्रह के कुछ गीत भी )। इस संग्रह में केवल गीत व छन्दबद्ध कविताएं ही हैं । 
वैसे तो मेरे पास (बाल-कविताओं के अलावा) लगभग तीन सौ पचास गीत व कविताएं हैं ,लेकिन उनमें अधिकतर रचनाएं व्यक्तिगत प्रलाप मानी जा सकतीं हैं । 
प्रतिकूल हवाओं में जीने की विवशता ने सृजन का कक्ष तो तलाश लिया पर उसमें खिडकियाँ नहीं थीं । अपने ही अँधेरे में घिर कर, उजाले की कल्पनाएं करते-करते लिखी गईं कविताओं में से इन गीतों को मैंने प्रकाशन योग्य समझा , लेकिन मेरी मान्यता कितनी सही है इसे आप सुधी पाठक ही तय कर सकते हैं ।
मेरे विचार से कोई कवि या लेखक जन्म से इतना पटु नही होता । उसकी प्रतिभा को प्रेरणाएं निखारतीं हैं । अवसर तराशते हैं । काव्य-साहित्य का अध्ययन एक दिशा देता है । मेरे पास यह सब नही रहा । या कि मैंने इस दिशा में कभी सोचा ही नही । 
यही कारण है कि मेरे ये गीत मेरी संवेदना के साक्षी तो हैं जिनमें कुछ पाने की छटपटाहट है ,और न पा सकने की तिलमिलाहट भी , विरोध की आँच है और प्रेम की फुहार भी, लेकिन ये गीत हिन्दी कविता के इतिहास में कोई कीर्तिमान बनाएंगे, ऐसी सुन्दर कल्पना मैंने नही पाली है । हाँ कहीं न कहीं पाठकों के हदय का कोई कोना छू सकेंगे ऐसी आशा तो रखती ही हूँ । इतनी सी उपलब्धि की अपेक्षा भी । यहाँ शीर्षक गीत है ,जो मैंने 1994 में लिखा था---
कहीं तो कोई पुकारेगा हमें 
कुछ ठहरले और मेरी जिन्दगी 
कुछ सँवरले और मेरी जिन्दगी ।

बोझ ढोते सफर कितना तय किया 
भूल जा सब ,क्या मिला है क्या दिया 
याद रखने को बहुत है एक पल 
जो मधुर अहसास में तूने जिया ।
स्वप्न,संभ्रम आस में विश्वास में 
कुछ बहल ले और मेरी जिन्दगी ।

फिक्र क्या है हो न हो चाहे सबेरा ।
अजनबी है ,इसलिये बोझिल अँधेरा 
हौसला रखना पडेगा कुछ तुझे 
और कुछ देंगी हवाएं साथ तेरा ।
हार कर यूँ लौट जाना बुजदिली है 
सोच, करले गौर मेरी जिन्दगी ।

दर्द को मत बाँट यूँ मायूस होकर
यह मिला उम्मीद और अपनत्त्व खोकर 
ना चुभन से डर ,जरा अभ्यस्त हो ले 
निकलते हैं शूल अब तो आम बोकर 
मीत ही अब मुँह छुपाकर वार करते 
कुछ सबक ले और मेरी जिन्दगी । 

(संग्रह एक दो दिन बाद किताबघर जिन्सीपुल ग्वालियर पर देखा जा सकेगा । )

6 टिप्‍पणियां:

  1. दीदी! यह भी सन्योग है कि अचानक ऑफिस में किसी काम से नेट ऑन किया तो आपकी पोस्ट सामने दिखाई दी! सबसे पहले तो इस गीत-संग्रह के प्रकाशन से जिंसी पुल ग्वालियर तक की दुरूह यात्रा के लिये जो संयम आपने बरता है उसकी बधाई. परोक्ष रूप से ही सही, इस यात्रा के अंतिम पड़ाव पर मैं आपके साथ चला, इसका मुझे गर्व भी है और जिन परिस्थितियों में मुझे आपके साथ खड़ा होना पड़ा उसपर क्षोभ भी है. जानता हूँ कि यह अवसर इन बातों का नहीं. लक्ष्य-प्राप्ति का सुख मार्ग की असुविधाओं को परे धकेल देता है, लेकिन कुछ टीस रह जाती हैं.
    अभी तो और कुछ नहीं कह पाऊँगा... दुबारा आऊँगा... मगर आज जिन पंक्तियों का उल्लेख आपने किया है उनसे मिलती जुलती पंक्तियाँ मैंने भी फेसबुक पर उद्धृत की है:

    आपने कहा -
    मीत ही अब मुँह छुपाकर वार करते,
    कुछ सबक ले और मेरी ज़िन्दगी!

    मैंने लिखा है -
    वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम,
    दग़ा करे जो किसी से, तो शर्म आए मुझे!

    शुभकामनाएँ दीदी!!

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    1. भाई ,आपने जिस दायित्त्व के साथ बात को गम्भीरता से लिया उसके उत्तर में कोई शब्द नही है ।

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  2. पाठक तो आपके गीतों से प्रभावित हैं ही। आशा है श्रेष्‍ठता के श्रेणी में भी ये जरूर आएंगे। समीक्षा भी समुचित प्रकार से लिखी गई है। पुस्‍तक के प्रकाशन पर बधाइयां और शुभकामनाएं स्‍वीकार करें।

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  3. आपके लेख, गीत और कविताओं से प्रभावित हुए बिना कोई रह नहीं सकता ... अपने अनुभव को संग्रह के रूप में प्रकाशित किया है अपने ये एक सुखद एहसास है ... मौका मिलने पर पुस्तक से भी साक्षात्कार होगा इसी आशा के साथ आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें ...

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  4. गीत-संग्रह के लिए आपको बहुत बहुत बधाई!!!!
    आपकी लिखी कवितायें या कहानियां, सब पाठकों के हृदय को छूती हैं, इसमें कोई शक नहीं....
    बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं आपको इस गीत-संग्रह के लिए !

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  5. कहीं तो कोई पुकारेगा हमें
    कुछ ठहरले और मेरी जिन्दगी
    कुछ सँवरले और मेरी जिन्दगी ।
    हर पल ठहरकर संवरने का नाम ही जिंदगी है
    बहुत सुन्दर गीत है,
    पुस्तक प्रकाशन पर बहुत बहुत बधाई, शानदार टिप्पणी के लिये
    आभार आपका , बस आती रहूंगी :)

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