शनिवार, 6 दिसंबर 2014

"हमहूँ चुनेंगे सरकार"

नगर निगम चुनाव पिछले दो चुनावों ( विधान-सभा ,लोकसभा ) से इस रूप में अलग था कि कंट्रोल-यूनिट के साथ दो बैलेट–यूनिट मशीनें थीं–एक महापौर के चुनाव हेतु ,दूसरी पार्षद को चुनने के लिए .खास बात यह कि दोनों मशीनों की बैलेट-बटन दबाने पर ही मतदान सम्म्पन्न होना था . पहली बैलेट को दबाने पर हल्की सी बीप आती थी और दूसरी दबाने पर लम्बी .लम्बी बीप एक मतदान पूरा होने का सूचक थी .उसके बिना मतदान पूर्ण नहीं होना था . हमें  जो पोलिंग बूथ मिला वह शहर के एक अत्यंत पिछड़े इलाके में था जहां सुचारू रुप से तो टायलेट की व्यवस्था भी नही  थी हालाँकि वहां शांतिपूर्ण मतदान सम्पन्न होगया, जबकि शहर में कई जगह झगड़ा व हंगामा हुआ .एक वार्ड में तो उपद्रवियों ने पीठासीन अधिकारी तक को पीटा और कंट्रोल-यूनिट को तोड़ दिया . खैर...
सुबह छह बजे चार अभिकर्त्ताओं (अलग-अलग दलों के एजेंट ) के सामने ‘मोकपोल’ (दिखावटी मतदान )  कराया गया .उसके बाद सात बजे से शाम पांच बजे तक मतदान का समय था .
चूँकि अधिकतर मतदाता मतदान की इस नई प्रक्रिया से अनभिज्ञ थे इसीलिए प्रक्रिया उतनी सहज व सुचारू नहीं थी  .मेरे साथ साथ तीनों मतदान अधिकारी भी लगातार मतदाताओं को पार्षद व महापौर के लिए अलग मशीनों में बटन दबाने का निर्देश देते रहे ताकि सही और पूर्ण मतदान हो सके . उस अवधि में हमें लगा कि टेलीविजन के तमाम चैनलों पर इस मतदान की प्रक्रिया का प्रचार होना चाहिए था . मतदान के दौरान इस विषयक कई रोचक व गंभीर प्रसंग सामने आए.
(1)
ठीक सात बजे कक्ष के बाहर मतदाताओं की कतार लग गयी . पहला मतदाता लगभग चालीस वर्ष का जो देखने में शिक्षित व समझदार व्यक्ति लग रहा था ,तीनों मतदान अधिकारियों से अनुमोदित होकर गर्व और प्रसन्नता ( पहला मतदाता होने की ) को सायास छुपाए आया .
महापौर और पार्षद दोनों के लिए वोट देना है .वहां रखी दोनों मशीनों में बटन दबाना है . —प्रशिक्षण में इस वाक्य पर खासा ध्यान दिया गया था वही लगभग सबने दोहराया .
मालूम है .—वह आत्मविश्वास से भरा बूथ के अंदर गया और फुर्ती से एक बैलेट का बटन दबाया .हल्की बीप की आवाज  आई
.आवाज तेज तो नहीं आई —वह उसी बटन को दो-तीन बार दबाते हुए बोला .
अब दूसरी मशीन का बटन दबाओ . बटन दबाते ही एक लम्बी बीप आई .मतदाता ने अपनी सफलता पर खुश होकर कहा-- .अरे वाह यह तो कमाल होगया .नया सिस्टम है . 
(२ )
अरे ओ अम्मा कहाँ जारही हो ? स्याही तो लगवा लो.—मतदान अधिकारी न.३ ने बूढी अम्मा को रोका जो पर्ची लेकर सीधी ई वी एम (इलैक्ट्रिक वोटिंग मशीन ) की और बढ़ी जा रही थी .अम्मा ठिठकी फिर लौटकर स्याही लगवा ली.
अम्मा दोंनों मशीनों में बटन दबाना .
हओ बेटा .—कहकर बुढ़िया ओट में चली गयी .और कुछ ही पलों में बाहर आगई .
अम्मा अभी वोट नहीं हुआ .
ए...! कैसें ना भयो . मैनें तौ बटन दबाई हती .—यह कह कर वह बाहर चलदी .
अरे रुको अम्मा .
काए ?
मैडम आप देखलो---एक नम्बर अधिकारी ने कहा तो मैंने नियमानुसार दो एजेंट अपने साथ बुलाए . यह नियम है . हम अकेले ही किसी मतदाता से मतदान नहीं करवा सकते .साथ एक दो (पार्टियों ) अभिकर्त्ताओं को लेना जरूरी है.
अब बटन दबाओ अम्मा
ए..लो ..
नहीं दबा ...सीटी नहीं बजी .
ए दबाइ तौ रई हूँ -उसने दो तीन बार बटन दबाते हुए कहा .
मैंने देखा ,वह एक ही मशीन के बटनों को दबाए जा रही थी .
अम्मा इस मशीन में तो तुमने वोट डाल दिया .अब वो जो बगल में दूसरी रखी है उसमें दबाओ .
हओ...
लम्बी सीटी बजी तब दूसरे मतदाता को आने दिया .
लम्बी बीप का आना उतना ही सुकून दे रहा था जितना खाना खाने के बाद भरपूर डकार का आना .
(२)    
एक पहलवान टाइप आदमी निकास के रस्ते अंदर घुसा . 
अरे ,इधर से नहीं ,उधर उस दरवाजे से आना है भाई .
क्यों इधर से का दिक्कित है ?
इधर से वोट देकर निकलने का रास्ता है .
अरे कहूँ से आओ जाओ ,का फर्क है! 'मुख्ख' काम है बोट देना सो.. !वह अड़ गया . उसके तेवर कुछ ठीक नहीं लग रहे थे .
चलिए आप उधर जाकर पर्ची दिखादे . कोई विवाद न हो इसलिए मैंने उसे मतदान अधिकारी नं.एक की और जाने को कहा. मतदाता रजिस्टर की चिह्नित प्रति उसी के अधिकार में होती है .
"लाओ पर्ची दो ." 
"ये लो ."--उसने शान से पर्ची दिखाई .
"आपका वोट यहाँ नहीं है ."अधिकारी ने रजिस्टर पलटते हुए कहा .
"यहाँ नहीं है ? मतलब ?"
"मतलब कि इस मतदाता रजिस्टर में आपका नाम नहीं है ."
"मैं तो हमेशा यही वोट डाला है .ध्यान से देखो मेरा नाम ,इसी में है."
"नहीं है भाई.मानते क्यों नहीं हो ?"उसका नाम सचमुच नहीं था. 
"कैसे मानूं ? यह साजिस है विरोधियों की . मेरा नाम हटवाया गया है पर मैं वोट डाले बिना नहीं जाऊंगा .लगभग पैतलीस पार का वह आदमी अड़ गया
"राजवीर भाई , आप ही इन्हें समझाएं नहीं तो बी.एल.ओ को बुलवाओ ."--मैंने एक एजेंट को बुलाया .उसने बताया--
"मैडम इस बार पर्चियों में बड़ा घाल-मेल हुआ है . लोगों के बूथ ही नहीं कही कही तो वार्ड ही बदल गए हैं . कितने ही वोटर पर्चियां लिए भटक रहे हैं ."
जब वहां के 'बीएलओ' को बुलवाया गया तब समस्या का निराकरण हुआ .
इसके बाद वहां नियुक्त आरक्षक को इसका खास खयाल रखने कहा गया कि आने वाला मतदाता इसी बूथ का हो और प्रवेश द्वार से ही प्रवेश करे .
(३)
यह वोटिंग मशीन तो खराब है मैडम —ओमपुरी-स्टाइल में एक नेतानुमा महाशय ने कुछ इस तरह घोषणा की मानो वह मशीन का विशेषज्ञ हो .
"क्या हुआ ?"
"अरे मैडम ,बटन दबता ही नहीं है . एकदम फ्राड है."
कहाँ दबा रहे हो ?"
मैंने देखा तो विस्मय हुआ . वे सज्जन उम्मीदवारों के नाम पर ऊँगली का दबाब बना रहे थे .
महोदय इन नामों के सामने बने ये जो गोल गड्ढे से दिख रहे हैं उनमें दबाना है .
अच्छा ?
(४)
ए बाई नैक बतइयो तौ ,बटन कहाँ दबानौ है –एक अधेड़ महिला ने मुझे बुलाया .
हाँ बोलो .
कौनसा बटन दबाऊ ? कछु समझ में ना आइ रयो .
मैं असमंजस में . मैं कैसे बता सकती हूँ कि कौनसा बटन दबाना है ! मैंने अभिकर्त्ताओं की राय ली .उनहोंने कहा—मैडम आप डलवा दो वो जिस पर भी कहे. 
तुम्हें पार्षद के लिए किसे वोट देना चाहती हो ? धीरे से मेरे कान में बोलदो -मैंने धीरे से पूछा .
दरबज्जे पे.
उपर से पांचवे नम्बर को दबादो ..दबा दिया ? ठीक अब महापौर के लिए ?
पतिंग पे .
देखो , उपर से छठे नम्बर पर है पतंग उसी के सामने का बटन दबाओ..—मैंने जिज्ञासावश देखा तो पाया कि उसने NOTA दबा दिया था और बेशक उसे इसका भान भी नहीं था .
इसके बाद हमने तय किया कि कम से कम ऐसी महिलाओं को हम पूरा सहयोग दें और देना ही पड़ा क्योंकि अधिकांश महिलाएं गलती कर रही थीं .
लेकिन एक महिला ने मुझे दूर से ही टोक दिया—
इधर क्या देख रही हो ?मैं वोट डाल रही हूँ
“ मैं कुछ नहीं कर रही हूँ . मुझे लगा कि आपको सहायता की जरूरत तो नहीं है."
"मुझे सहायता की जरूरत नहीं है .और आप क्यों करेंगी सहायता ? ये गलत है , अवैध है..."
मुझे नसीहत देने वाली वह महिला नियमानुसार तो सही थी लेकिन मैं भी गलत कहाँ थी ? गलत होता दल विशेष के लिए वोटिंग की प्रेरणा देना या दबाब बनाना. बिना हमारी सहायता के तो आधी वोटिंग भी नहीं हो पाती या जो होती वह गलत होती .
प्रमुख राष्ट्रीय दलों के उन अभिकर्त्ताओं ने उस महिला को समझाया तब वह वहां से टली लेकिन मुझे यह देखकर अच्छा लगा कि कोई मतदाता खासतौर पर महिला इतनी जागरूक है .
काश ऐसे ही सभी मतदाता होते .





5 टिप्‍पणियां:

  1. लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व का आँखों देखा हाल आपसे सुनकर बड़ा मज़ा आया. हम बैंक वाले भी इस पर्व का हिस्सा बनने से अछूते नहीं हैं, लेकिन सन्योग ही रहा है कि मैं हमेशा इससे बचा रहा. चुनाव प्रक्रिया वास्तव में कई बार मनोरंजक होती है और कई बार भयानक भी हो जाती है, जैसे अभी आपके साथ होते होते रह गई! कई स्थानों पर तो हिंसा की घटनाएँ भी होती हैं! मेरा छोटा भाई तो प्रशासन का अंग है, इसलिये उससे सुनता रहा हूँ.
    वैसे दीदी आज आपकी एक बात पर बड़ी हँसी आई पढते हुए..
    .

    "हमें जो पोलिंग बूथ मिला वह शहर के एक अत्यंत पिछड़े इलाके में था जहां सुचारू रुप से तो टायलेट की व्यवस्था भी नही थी हालाँकि वहां शांतिपूर्ण मतदान सम्पन्न होगया, जबकि शहर में कई जगह झगड़ा व हंगामा हुआ."

    मतलब यह कि जहाँ टॉयलेट की व्यवस्था न हो वहाँ चुनाव शांतिपूर्ण होते हैं!!
    बहुत हल्के फुल्के अन्दाज़ में आपने मतदान प्रक्रिया के साथ साथ लोगों की मानसिकता को भी बहुत बारीकी से परखा है!
    मज़ेदार!!

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  2. बढ़िया झलकियाँ . लोगों को -विशेष कर इन महिलाओं को -अभ्यस्त होने में समय लगेगा
    जनता के बीच काम करने के अनुभव होते हैं बड़े मज़ेदार !लोगों के प्रकार-तकरार का साकार चित्रण जैसे साक्षात् लोकसाहित्य की रचना - अगर कोई उन्हें ऐसे ही सहज और सचेत मन से लिखे .

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  3. मतदाता का जागरूक होना एक अच्छा संयोग है देश के लिए .... और विशेष कर महिला मतदाता का क्योंकि वो अधिकतर कार्य को ज्यादा महत्त्व देती हैं ... अच्छा लगा आपकी झलकियों को देख कर .. अच्छा अनुभव साझा किया है आपने ...

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  4. मतदान और मतदाताओं का रोचक विवरण पढ़कर कई नई बातों की जानकारी भी हुई..आपकी पारखी नजर से कुछ बचा नहीं..

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  5. मतदाता का जागरूक होना एक अच्छा संयोग है

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