जगमगाए दीप अनगिन नयन
में सखि री.
सज गयी दीपावली में
हदय की नगरी .
राम देखो लौट आए सिय
लखन के साथ .
फूल बरसाए हदय ने आज
दोनों हाथ .
आज उमड़ी है नदी छलके
नयन जल री .
राम मेरे आगए हैं अवध
की नगरी .
हदय के वन में प्रभु
कर ही रहे थे वास .
किन्तु भावों की अवध
को अब मिला मधुमास .
मुक्त होकर उड़ चली
आसा विहंगिन री .
जीत यह विश्वास की
धीरज प्रतीक्षा की .
नीति के ध्रुव सत्य
की ,सच की समीक्षा की .
कामना पूरी हुई तपरत भरत की री .
राम मेरे लौट आए ...
पुष्प में जैसे सुरभि
है नीर है सरुवर .
प्राण जैसे देह में
कण कण रमे रघुवर .
राम ही चिन्तन मनन हैं राम ही गति री .
राम मेरे लौट आए...
अवनि से आकाश तक
प्रभु राम का ही राज
हवाओं में गूँजती है
एक ही आवाज .
मन वचन और कर्म से तू
राम ही रट री .
राम मेरे आगए हैं अवध
की नगरी .
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 13 नवम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना | दीप पर्व की शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंराम ही चिन्तन मनन हैं राम ही गति री .
जवाब देंहटाएंवाह!!!
भक्त भाव सम्पन्न बहुत मनभावन गीत👌👌🙏🙏
भावपूर्ण सृजन, दीप उत्सव की शुभकामनाएँ !
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