शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

हृदय धरा का

हृदय धरा का 

अथाह ,असीम

नेह भर उमड़ता है,

देखकर प्रिय को

पूर्णकला सम्पन्न

भर लेता है आगोश में

वंचित से किनारों को .

भर देता है दामन बादलों का

दिल खोलकर .

 

धड़कता है हदय धरा का

किसी की आहट पर

प्रतीक्षा और धैर्य की

टकराहट पर .

हिलोरें उठतीं हैं

टकराती है पलकों के किनारों से

 

मिलती हैं जब बदहाल नदियाँ

लिपटती हैं ससुराल से आईं बेटियाँ

जैसे माँ से 

 मन ही मन सिसकता है .

हदय धरा का .

 

और गरजता भी है

हृदय धरा का

किसी के थोथे दम्भ पर

झूठे अवलम्ब पर .

अनर्थ और अतिचार पर

उफन उफन कर   

उत्ताल तरंगें मिटा देतीं हैं

हर चिह्न मनमानी का .  

 शान्त और प्रसन्न

स्नेह से सम्पन्न

लिखता है गीत

सावन की हरियाली के

फूलों भरी डाली के .

पर ध्यान रहे कि

रुष्ट हो तो

प्रलय भी लाता है .

हदय धरा का .



9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 03 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. वाक़ई कुदरत के आदमी की आगे मनमानी नहीं चलती

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  3. मिचौंग तूफ़ान शायद धरा के गरजते हुए ह्रदय का ही प्रमाण है।लोभ और अहंकार तजकर मानव को कुदरत के सामने नत मस्तक होना है

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