शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

सर्दी के दिन

अब दिनों का बढ़ना शुरु होरहा है . उससे पहले ही दिसम्बर के छोटे दिनों को लेकर एक कविता पुनः प्रस्तुत है  -------------------------------------------------------------

मँहगाई सी रातें
सीमित खातों जैसे दिन ।
हुए कुपोषण से ,
ये जर्जर गातों जैसे दिन ।

पहले चिट्ठी आती थीं
पढते थे हफ्तों तक
हुईं फोन पर अब तो
सीमित बातों जैसे दिन ।

वो भी दिन थे ,
जब हम मिल घंटों बतियाते थे
अब चलते--चलते होतीं
मुलाकातों जैसे दिन ।

अफसर बेटे के सपनों में
भूली भटकी सी ,क्षणिक जगी
बूढी माँ की
कुछ यादों जैसे दिन ।

भाभी के चौके में
जाने गए नही कबसे
ड्राइंगरूम तक सिमटे
रिश्ते--नातों जैसे दिन ।

बातों--बातों में ही
हाय गुजर जाते हैं क्यों
नई-नवेली दुल्हन की
मधु-रातों जैसे दिन ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. दिसंबर के बहाने बदलते हुए हालातों पर रोचक और खट्टी-मीठी सी टिप्पणी

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  2. हम गुज़र जाते हैं ... बातों बातों में ...
    पर शायद वक़्त भी बीत जाता है बातों बातों में और बूढ़े हो जाते हैं हम उसके साथ ... यादें यादें यादें ... यही तो रहती हैं बस ...

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  3. बहुत खूब,,दिन कैसे कैसे बीत जाते है, कोई नही जानता,,,,बहुत अच्छी प्रस्तुति,,, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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