20 अगस्त ---गतांक से आगे
सुबह जल्दी नींद खुल गई . बाहर घास और कारों पर जमे हिमकणों से पता चला कि रात कितनी ठंडी थी . लेकिन पेड़ों की फुनगियों से उतरती धूप सुबह को सुहानी बना रही थीं . हवा तेज और नुकीली थी पर सुबह की ताजगी का अनुभव उसकी चुभन को कम कर रहा था . घास पर टहलते हुए मैंने छाती में खूब गहरी साँसें भरीं .प्रकृति ने यह अनमोल उपहार सबके लिये मुक्तहस्त लुटाया है .कुछ देर बाद श्वेता भी बाहर निकल आई हम लोग देर तक घास में टहलते रहे .बगलवाले पोर्शन में अभी भी पर्दे पड़े थे .
“कल साढ़े दस बजे तक हमें ‘सीनिक-वर्ल्ड’ पहुँचना होगा .”-–मयंक ने कल सोने से पहले ही बता दिया इसलिये उसी समय के अनुसार हम तैयार होकर जैमिसन वैली की तरफ चल पड़े .
सीनिक रेल वे |
सीनिक रेल वे 310 मीटर
लम्बा 52 डिग्री झुका ,और संभवतः विश्व का सबसे तीव्र ढलान वाला रेलमार्ग है . जिस
पर ग्लास की पारदर्शी छत और कवर वाली सुन्दर ट्रेन चलती है जिसमें एक साथ 84 यात्री
उस रोमांचक यात्रा का आनन्द ले सकते हैं . 310 मीटर लम्बे मार्ग में सीधी ढलान है .
उस पर खड़ी चट्टानों और सुरंग से बीच से गुज़रती हुई ट्रेन एक दो जगह तो लगभग
गिरती हुई सी प्रतीत होती है . उस क्षण यात्री बरबस ही बच्चे बन जाते हैं . चीत्कार
और सीटियाँ से सुरंग गूँज उठती है .भयवश नहीं रोमांचक अनुभव के कारण . पारदर्शी खिड़कियों
व छत से पेड़ , चट्टानें , बादल ..पीछे छूटते लगते हैं . कुछ पल के लिये तो लगता
है जैसे ट्रेन धरती में समा ही जाएगी . शिखर से नीचे आखिरी
बिन्दु तक पहुँचने में लगभग दो या ढाई मिनट का समय लगता है . लौटने में भी लगभग इतना
ही . हमारा पैकेज़ असीमित था ,इसलिये हमने दो बार जाकर इस अनूठी रेल के सफर का
आनन्द लिया .
19 वीं शताब्दी में यह ट्रेन कोयले की खदानों की सेवा में शुरु की गई थी . उस समय यह साधारण डिब्बों वाली ट्रेन थी . सन् 1945 ई. में Hammon family द्वारा अधिग्रहीत कर लेने के बाद यह अत्याधुनिक रूप में पर्यटकों के लिये शुरु की गई .
सीनिक केबल वे –जेमिसन वैली से ढलान के शिखर तक 545 मीटर लम्बा केबल वे एक मनोरंजक , रोमांचक और सुविधाजनक हवाई सफर है . यह हवाई केबल मार्ग सन् 2000 ई में शुरु किया गया . इसे आधुनिक रूप सन् 2018 में दिया गया है .84 यात्रियों की क्षमता वाली सुन्दर सुविधाजनक और पारदर्शी स्विस-मेड केबल कार का निर्माण प्रसिद्ध केबल इंजीनियरिंग कम्पनी Doppelmeyr Garaventa द्वारा किया गया है . दक्षिणी गोलार्द्ध की यह सबसे अधिक लम्बी बड़ी और ढलान वाली हवाई केबल-कार है . संभवत मनोरम और रोमांचक भी . शीशे के पार थ्री सिस्टर्स , ओरफन रॉक ,खड़ी चट्टानें और सुदूर तक बिछा हुआ सा सघन वन देखते हुए ऊपर की ओर जाते हैं तब उड़ने का सा अनुभव होता है . वह सचमुच एक अपूर्व और अविस्मरणीय अनुभव रहा .
स्काइ वे |
वॉक वे |
कोल माइनर और पोनी |
उसके इतिहास से जुड़ी जानकारियाँ भी कि कोयले की खदान John Britty North (जिसे ‘फादर ऑफ कटूम्बा‘ कहा जाता है) द्वारा 1879 में शुरु की गई थी . वैसे खदान की शुरआत तो 1872 में होगई थी लेकिन रजिस्ट्रेशन 1878 के बाद ही हुआ . 1945 में इसे बन्द कर दिया गया .
जिनोलन गुफाएं---जिनोलन गुफाएं ऑस्ट्रेलिया में गुफाओं की सबसे बड़ी श्रंखला है . ये ब्ल्यू माउंटेन के पठारी क्षेत्र में चूना-पत्थर की गुफाएं हैं जिनमें अन्दर चूने के पानी से बनी विचित्र आकृतियों चकित करती हैं .अपनी विचित्रता और रोमांचक सुन्दरता के कारण जिनोलन गुफाओं को सन् 1866 से पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित किया गया है जिनोलन Jenolan की उत्पत्ति ऑस्ट्रेलिया के मूलनिवासियों द्वारा प्रयुक्त Gnowlan से हुई है जिसका आशय पैर की आक़ृति वाली उच्चभूमि से है .
जिनोलन गुफाएं वैसे तो लगभग 22 हैं लेकिन उनमें दस ही गुफाएं
पर्यटकों के लिये खोली गई हैं . उनमें भी तीन गुफाएं ही अधिकांशतः देखी जाती हैं –ओरिएंट
, इम्पीरियल और चिफली .
ल्यूसिंडा चेम्बर में शाल |
मैडोना चेम्बर |
मेडोना Medonna चेम्बर का यह नाम चूने के पानी के रिसने से बनी आक़तियों में प्रसिद्ध गायिका और अभिनेत्री मेडोना और उसके बच्चों की कल्पना करके रखा गया . .और .ल्यूसिंडा Lcinda Chamber., जिनोलन गुफा का सबसे खूबसूरत हिस्सा है .कई जगह बार्डर वाले शॉल या साड़ी के खूबसूरत पल्ले जैसी आकृतियाँ चकित करती हैं .स्फटिक और झिलमिलाते सुनहरे रुपहले कण धरती का रत्नगर्भा नाम सार्थक करते लगते हैं . चूना मिश्रित पानी रिसने से बनी और बनती जारहीं विचित्र और मोहक आकृतियाँ किसी को भी विस्मय से भरने के लिये पर्याप्त हैं . इस जगह की खूबसूरती से Jeremiah इतना प्रभावित हुआ कि इसे अपनी पत्नी Lusinda का नाम दे दिया . इसके अलावा Wall Of noses, Lion’s Den . katies Bower गुफा के अन्य आकर्षण थे . Katies Bower 19 वर्षीया बहादुर लड़की Katie Webb की कहानी कहता है . कैटी की जिद थी कि गुफा में जिस रास्ते से आए हैं उससे लौटेंगे नहीं
कैटी बाउर |
गुफा में कुछ पल लाइट बन्द करके यह अनुभव भी कराया कि मानव ने कभी ऐसे अँधेऱों में भी जीवन बिताया होगा और किसी भी तरह रोशनी की व्यवस्था की होगी या फिर अभ्यस्त होगया होगा अँधेरे का ..कैसा होगा वह युग भूगर्भ में कितने रहस्य छुपे हैं . कितनी हलचलें होती रही हैं कि पर्वत से समुद्र् और समुद्र से पर्वत बन जाते हैं .एक बार कहीं पढ़ा था कि हिमालय में व्हेल का जीवाश्म मिला था . मेरा विचार है कि हर बच्चे को भूगोल की जानकारी अवश्य होनी चाहिये . धरती से जुड़कर ही जीवन का यथार्थ समझ आता है . प्रकृति के आगे हम कुछ नहीं हैं .
चूने का पानी रिसने से बनी आकृति |
एक घंटे के गुफा भ्रमण के बाद हम बाहर आए तो उजाला और भी
सुहाना लग रहा था .
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-09-2022) को "गुरुओं का सम्मान" (चर्चा अंक-4545) पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार शास्त्री जी
हटाएंरोचक यात्रा विवरण, इन सभी जगहों पर हम भी गए थे सो पढ़ते हुए सब कुछ पुनः स्मरण हो आया, आपने बहुत शोध करके यह आलेख लिखा है
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार अनीता जी . आप भी अपने कुछ प्रसंग बताइये ना . मुझे और भी जानने मिलेगा .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। बढ़िया जानकारी मिली🌻❤️
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