मंगलवार, 13 सितंबर 2022

मातृभाषा माँ --हिन्दी दिवस पर एक कविता

 मातृभाषा माँ है

माँ ,

जो समझती है
समझा सकती है औरों को भी
ह्रदय की हर बात
आसानी से .
माँ ,
जो छोटा नही होने देती अपने वश भर
अपनी सन्तान को-कभी ,... कहीं भी .

मातृभाषा, धरती है ।
धरती ,
जिसके उर्वरांचल में ही
उगती हैं, लहलहाती हैं
फसलें सपनों की .
संवेदना अपनों की
भावों की ,उद्गारों की ,
नदी के नम कूल किनारों की  
धरती पर ही टिकाए जा सकते हैं
पाँव मजबूती से ।
तय की जा सकती है लम्बी दूरी
बिना रुके ,बिना थके .
आसमान में पंछी उड़ सकते हैं 
पर उतरना होता है उन्हें 
ज़मीन पर ही .
जीने के लिये .

मातृभाषा, 
अपने घर का आँगन
आँगन ,
जहां कोने--कोने में रची-बसी है
गभुआरे बालों की खुशबू ।
दूधिया हँसी की खनक
आँगन , 
जहाँ सीखते हैं सब , 
सर्वप्रथम, बोलना ,किलकना
चलना , थिरकना ।

हिन्दी हमारी मातृभाषा, 
हमारी ज़मीन और आसमान 
घर का सही पता और पहचान ।
पत्र भी मिला करते हैं हमेशा
सही पते पर ही .
( पुनःप्रकाशित व संशोधित) 
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