भाग--3 से आगे व्यास और विपाशा
19 अप्रैल 2016
बीर गाँव में सूर्योदय |
भागसूनाग में छोटी छोटी
दुकानों के हमें आकर्षित किया . वहाँ से रंगीन मनकों वाली कुछ खूबसूरत मालाएं और
मान्या की पसन्त की चीजें खरीदीं . और आगे चल दिये क्योंकि हमारी मंजिल तो मनाली
था जो अभी काफी दूर था . रास्ते में पालमपुर के सौन्दर्य ने हमें बरबस ही कुछ देर
रोक लिया . यह काँगड़ा घाटी का बहुत खूबसूरत शहर है . सुदूर हरी भरी हिमाच्छादित
श्रृंखलाएँ ,कल कल निनादिनी सलिला , चाय के बागान ,बेशुमार गुलाब के फूल, बौद्धमठ
...सब कुछ तो है वहाँ . चिड़ियाघर ने अवश्य निराश किया .
पालमपुर |
पालमपुर से 16 कि.मी. दूर
बैजनाथ धाम है . कहा जाता है कि पाण्डवों ने अज्ञातवास के दौरान इस मन्दिर का
निर्माण करवाया था .बाद में सन् 1214 में दो स्थानीय आहुक व मनुक नाम के
व्यापारियों ने इसका पुनर्निर्माण कराया .यहाँ परिसर में नन्दी की प्रतिमा है .
कहा जाता है कि नन्दी के कान में अपनी कोई अभिलाषा कहने पर वह पूरी होती है . लोग
ऐसा कर भी रहे थे .मैंने कौतूहलवश एक छोटी सी बात नन्दी के कानों में कही . मजे की
बात यह कि वह पूरी हुई . जरूरी नही कि सदा ऐसा हो ही पर मान लेने में भी क्या हर्ज
है .
उस रात हम लोग बीर नामक
गाँव के सागरमाथा होटल में ठहरे .सागरमाथा नाम बड़ा अच्छा लगा जो कि हिमालय पर्वत
का ही एक नाम है . चारों ओर हरियाली से समृद्ध यह स्थान पैराग्लाइडिंग के लिये
जाना जात है .यहाँ अनेक सुन्दर बौद्धमठ भी हैं .
मान्या और अश्विका |
कल कल निनादिनी व्यास व्यास यहाँ गंभीर है . |
20 अप्रैल को सुबह आठ बजे
हम लोग मनाली की ओर निकल पड़े जो हमारा गन्तव्य था .यह एक बहुत ही मनोहर और सुहाना
सफर था .मण्डी से मनाली तक पूरे रास्ते सड़क के समान्तर (लेकिन विपरीत दिशा में) बहती व्यास नदी की निर्मल
चंचल धारा रोम रोम में स्फूर्ति भरती रही .व्यास का सौन्दर्य हिमाचल के प्राकृतिक
वैभव को चार चाँद लगाता है . यह पथरीली और चट्टानी राह में बहने वाली प्रखर वेग
वाली नदी है पर कहीं कहीं मन्थर गति में काफी गहरी भी है . पीरपंजाल पर्वत
श्रृंखला में रोहतांग दर्रा व्यास का उद्गम-स्थल है . ,जहाँ महर्षि वेदव्यास का
मन्दिर है . 470 कि.मी. का सुहावना सफर पूरा करके सतलुज से मिल जाती है .
नदियाँ जीवन रेखा होतीं हैं पर अपनी अवमानना भी इन्हें बर्दाश्त नहीं . ड्राइवर ने हमें वह स्थान भी दिखाया जहाँ खेल खेल में 24 छात्र व्यास की धारा में समा गए थे .उसे याद कर ह़दय एक बार फिर दहल गया . तब इसका विपाशा ( बन्धन-मुक्त ) नाम सार्थक लगा और गुप्त जी की प्रकृति विषयक वह पंक्ति याद आई –“अनजानी भूलों पर भी वह अदय दण्ड तो देती है ..” फिर यह तो उनकी जानी मानी लापरवाही थी .खैर हमें आगे बढ़ना था .
आगे भुन्तर नामक स्थान पर व्यास और पार्वती नदी का संगम है .वह दृश्य बहुत ही लुभावना है . हम लोग वहाँ कुछ देर ठहरे . संगम के सौन्दर्य को आँखों में भरा , कैमरे में भी .प्रशान्त को फोटो लेना ज्यादा पसन्द नहीं . कहता है कि फोटो लेने के चक्कर में हम दृश्यों का पूरा आनन्द नही ले पाते .ठीक है लेकिन यह भी सही है कि फोटो खूबसूरत और जीवन्त यादें होते हैं , घर बैठे उन जगहों का बार बार भ्रमण कराते हैं .
नदियाँ जीवन रेखा होतीं हैं पर अपनी अवमानना भी इन्हें बर्दाश्त नहीं . ड्राइवर ने हमें वह स्थान भी दिखाया जहाँ खेल खेल में 24 छात्र व्यास की धारा में समा गए थे .उसे याद कर ह़दय एक बार फिर दहल गया . तब इसका विपाशा ( बन्धन-मुक्त ) नाम सार्थक लगा और गुप्त जी की प्रकृति विषयक वह पंक्ति याद आई –“अनजानी भूलों पर भी वह अदय दण्ड तो देती है ..” फिर यह तो उनकी जानी मानी लापरवाही थी .खैर हमें आगे बढ़ना था .
आगे भुन्तर नामक स्थान पर व्यास और पार्वती नदी का संगम है .वह दृश्य बहुत ही लुभावना है . हम लोग वहाँ कुछ देर ठहरे . संगम के सौन्दर्य को आँखों में भरा , कैमरे में भी .प्रशान्त को फोटो लेना ज्यादा पसन्द नहीं . कहता है कि फोटो लेने के चक्कर में हम दृश्यों का पूरा आनन्द नही ले पाते .ठीक है लेकिन यह भी सही है कि फोटो खूबसूरत और जीवन्त यादें होते हैं , घर बैठे उन जगहों का बार बार भ्रमण कराते हैं .
कुल्लू घाटी में 1800 की
ऊँचाई पर नग्गर शहर भी एक ऐतिहासिक पर्यटन-स्थल है . यहाँ हमने निकोलाई रोरिक की
आर्ट गैलरी देखी . ये महान रूसी चित्रकार थे . अपने जीवनकाल में लगभग 7000
पेन्टिंस बनाईं .जो विश्व की प्रत्येक वीथिका में ससम्मान स्थापित हैं . इनमें से
अनेक सुन्दर दुर्लभ चित्र इस म्यूजियम में हैं . हिमालय से उन्हें इतना लगाव था कि एक लम्बा समय उन्होंने हिमाचल में बिताया . उनकी सुन्दरतम कृतियों में हिमालय ही है .हम उनकी पेन्टिंग्स के फोटो नही ले पाए लेकिन गूगल पर उनकी बहुत सारी सुन्दर पेंन्टिंग्स हैं . देखी जा सकतीं हैं . आपने देखी भी होंगी .
शाम को मनाली का मुख्य बाजार देखा .
शाम को मनाली का मुख्य बाजार देखा .
कुल्लू घाटी के उत्तरी छोर
पर व्यास नदी की घाटी में 1950 मीटर ऊँचाई पर स्थित मनाली एकदम शान्त .वाहनों के
शोर से मुक्त हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा छोटा सा सुन्दर शहर है .आज सभी
काफी थके हुए थे . विश्राम के लिये कुल्लू मनाली के बीच कटराई नामक गाँव के एक
खूबसूरत होम-स्टे बुक किया हुआ था . चार पाँच दिन के सफर में पहली बार इतना
स्वादिष्ट खाना और आरामदायक शयन कटराई में मिला .सुबह चिड़ियों के कलरव ने जगाया
तब रोम रोम स्फूर्ति से भरा था .
जारी .......
जारी .......
ये संस्मरण नहीं बल्कि किसी कथा चित्र की भाँति आँखों के सामने से गुज़र रहा है जैसे ... जादू है आपके शब्दों में जो मनोरम दृश्यों को कैमरे की तरह उतार रहा है ... मनाली के रास्ते बिताए लम्हे यादगार बना लिए हैं ...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा इनको पढ़ना ...
अत्यंत रोचक यात्रा विवरण !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-04-2019) को "बेचारा मत बनाओ" (चर्चा अंक-3308) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/04/2019 की बुलेटिन, " सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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