सोलांग घाटी |
आज भी हमारी आँखें ‘कटराई’ की सुहानी
सुबह देखते हुए खुली . आज भ्रमण के अन्तिम दिन सबसे पहले हम मनाली में हिडिम्बा
देवी के मन्दिर गए .
हिडिम्बा देवी का मन्दिर (सामने) |
हम सभी जानते हैं कि लाख
के महल से जीवित बच निकले पाण्डवों ने अनेक वर्ष वन में बिताए . वन में ही उन्हें
हिडिम्बा मिली . वह राक्षस कुल की थी . वह भीम से मन ही मन प्रेम करती थी . जबकि उसका
भाई हिडिम्ब पाण्डवों से युद्ध करते मारा गया
,और हिडिम्बा अकेली रह गई , कुन्ती ने भीम से उसका विवाह करवा दिया .वही
हिडिम्बा बाद में घटोत्कच जैसे वीरपुत्र की माँ बनी . श्री कृष्ण की प्रेरणा से
हिडिम्बा लोक कल्याण के कार्यों में रम गई . कुल्लू के शासक विहंगमणि पाल को राजा
होने का वरदान हिडिम्बा ने ही दिया . कुल्लू में हिडिम्बा देवी की बहुत मान्यता है
. कुल्लू का दशहरा तब तक शुरु नही ता जबतक देवी न पहुँच जाएं
ऊँचे विशाल देवदार के
वृक्षों के बीच स्थित पैगोड़ा शैली में बना यह मन्दिर बहुत भव्य और कलात्मक दृष्टि
से उत्कृष्ट है .मनाली से केवल एक कि.मी.दूरी पर है . मन्दिर के भीतर एक चट्टान है
जिसे स्थानीय भाषा में ढूँग कहा जाता है इसलिये हिडिम्बा देवी को ढूँगरी देवी भी
कहा जाता है .. वहाँ सवारी के लिये याक खूब मिलते हैं . मान्या अश्विका ने याक
की सवारी का आनन्द लिया .
वाटर राफ्टिंग से आते हुए प्रशान्त |
मन्दिर से लौटकर प्रशान्त,
सुलक्षणा, कार्तिक ,चारु ,मान्या,और अश्विका ने व्यास के उछलती मचलती बर्फीली वेगवती धारा में
रोमांचक वाटर-राफ्टिंग का आनन्द लिया . यह थोड़ा साहसिक कार्य है .राफ्टिंग बोट
लहरों साथ ही उछलती है, लहराती है . बच्चों के आग्रह के बावजूद मैं उसमें शामिल
नही हुई . धारा के साथ ही चलती गाड़ी में से मैंने उसके रोमांच का अनुभव किया .
शाम को वशिष्ठ मन्दिर गए .
मनाली से ढाई कि.मी.दूर
वशिष्ठ नामक गाँव में भगवान राम और वशिष्ठ मुनि के दो छोटे मन्दिर हैं .ये काठकुणी
शैली के परिचायक हैं जिसमें देवदार की लकड़ी का प्रयोग ज्यादा हुआ है . लोगों के
आवास गृहों में भी लकड़ी का उपयोग अधिक हुआ है .भी यहाँ गर्म जल के दो प्राकृतिक
स्रोत हैं जहाँ पुण्यलाभ के अलावा चर्मरोगों से छुटकारा पाने के लिये लोग स्नान
करते हैं . हमने वहाँ विदेशी पर्यटकों ( महिलाएं भी )की भीड़ देखी जो अपनी शैली
में स्नान कर रहे थे .कहने की आवश्यकता नही कि वे भीड़ के आकर्षण का खासा केन्द्र बने हुए थे .
मन्दिर के गर्भगृहों में मनु ऋषि व हिडिम्बा देवी की
प्रतिमाएं हैं . यहाँ सुन्दर बाजार भी है .हमने कुछ सूट खरीदे .लौटकर मनाली के
बाजार में जलेबी का आनन्द लिया .हालाँकि मुझे तो नाम बड़े दर्शन छोटे लगे . वहाँ
से ज्यादा स्वादिष्ट जलेबियाँ हमारे 'लवली स्वीट्स' पर मिलतीं हैं . वहाँ सेव का
अचार और आलूबुखारे का जैम भी खूब मिलता है .
शॉल की बुनाई |
कुल्लू एयरपोर्ट |
अँधेरा होते ङोते हम कटराई
वापस आ गए . रात में सोने से पहले यह विचार हल्की सी उदासी के साथ आया कि यहाँ
बीते ये खूबसूरत तीन दिन कल के बाद सिर्फ याद रह जाने वाले हैं . सुबह 23 अप्रैल
को गृहस्वामियों ने दही पराँठे और पपीता का स्वादिष्ट नाश्ता दिया . हमने इतने
अच्छे आतिथ्य के लिये उन्हें हार्दिक धन्यवाद कहा और कुल्लू एयर पोर्ट की ओर चल
पड़े . दिल्ली से मैं ग्वालियर और प्रशान्त आदि सब लोग बैंगलुरु के लिये रवाना हुए
.
घर लौटकर फिर वही पीड़ा थी, माँ को खोने की लेकिन उस पीड़ा भरी याद के साथ स्मृतियों में , चिन्तन में आकाश की ओर तने देवदार के शानदार वृक्षों का अनन्त वैभव , बर्फ के शॉल
ओढ़े ऊँचे शिखर ,मण्डी से मनाली तक प्रतिपल साथ चलती कलकल निनादिनी चंचल व्यास नदी
का अपार सौन्दर्य , पहाड़ों के चकित कर देने वाले घुमावदार रास्ते ,सेव अखरोट के
बगीचे ,रात में पहाडों पर जुगनू की तरह टिमटिमाते चार-छह घरों वाले गाँव....और बहुत
कुछ था जो अँधेरी रात में चन्द्रमा की तरह चमक जाता था जो अँधेरे को पूरी तरह दूर तो नही करता पर उसे बहुत हल्का कर देता है . इतना कि हम खुद को देख सकें ,पहचान सकें.
खूबसूरत यादें हमारी बहुमूल्य पूँजी होतीं हैं, अँधेरे में मिले उजाले जैसी यकीनन...
हिडिम्बा देवी का मंदिर .. ये अपनी संस्कृति की विविधता ही है जिसपे गर्व किया जा सकता है ... देवों की भूमि पे देवों का वास होना तो निश्चित ही है ...
जवाब देंहटाएंआपकी ७ दिनों की यात्रा के पढाव निश्चित ही दर्शनीय हैं ... नयनाभिराम दृश्य और आपकी लेखनी ने सहज ही हूबहू उतार दिया है उन्हें इस ब्लॉग की केनवास पर ... अच्छी श्रंखला संस्मरण की ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-04-2019) को "झरोखा" (चर्चा अंक-3314) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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पृथ्वी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर संस्मरण। आपने सही कहा खूबसुरत यादें हमारी बहुमूल्य पूँजी होती हैं।
जवाब देंहटाएंहर स्थान से जुड़ी कोई न कोई कथा होती है जो वहाँ की लोकसंस्कृति का हिस्सा होती है. हम घूमने जाते हैं पर वहाँ की सुंदरता देखकर लौट आते हैं, इसीलिये कई लोगों को मैंने अक्सर यह कहते हुये सुना है कि अरे नया क्या था वहाँ... वही मंदिर, वही पहाड़, वही नदियाँ... लेकिन यात्रा का सही आनंद तब है जब आप उनस एजुड़ी नई कहानियाँ, ऐतिहासिक घटनाएँ और सबसे बढ़कर वहाँ की लोक परम्परा को जानते हैं. आपकी इस शृंखला ने इन वर्णनों से हिमाचल की सुंदरता को और बढ़ा दिया है!
जवाब देंहटाएंवहाँ होने का आनंद अनुभव हुआ!!
आफ पहला भाग जरूर पढ़िये . उस दौरान मैंने आपको भी सन्देश भेजा था .
जवाब देंहटाएंखूबसूरत यादें हमारी बहुमूल्य पूँजी होतीं हैं, अँधेरे में मिले उजाले जैसी यकीनन...बेशक़
जवाब देंहटाएंअनुपम लेखन