कल फेसबुक पर अनायास ही एक समाचार
सामने आया –
“राहुलराज विश्वकर्मा संगीत के
क्षेत्र में 2024 के शिखर-सम्मान से सम्मानित .”हृदय पुलक और विस्मय से भर गया. लगन ,अविराम परिश्रम और अभ्यास कहाँ से कहाँ पहुँचा देता है किसी को . एक सीधे सादे ,अपने वज़ूद के लिये संघर्षरत राहुल को आत्मविश्वास के साथ सम्मान लिये देखना कितना सुखद है .
राहुल विश्वकर्मा ! शासकीय जीवाजीराव उ.मा.वि. में केवल दो वर्ष रहा मेरी कक्षा
का छात्र . छात्र सभी प्रिय होते हैं
लेकिन कुछ छात्र अपनी जिज्ञासा ,उत्कण्ठा और विनम्रता के कारण सदा के लिये हृदय पर की अमिट छाप छोड़ जाते हैं . राहुल उन्ही में से एक था (है)
2013 के जुलाई में एक सौम्य और सीधा-सादा छात्र मेरी कक्षा में इस परिचय के साथ प्रविष्ट हुआ कि वह विदिशा
के एक गाँव मथुरापुर से यहाँ पढ़ाई के साथ संगीत की शिक्षा लेने के उद्देश्य से आया है एक गीत पर मुख्यमंत्री जी से पुरस्कृत भी हो चुका है. वहाँ के जिलाधिकारी और एक पत्रकार के
सहयोग से यहाँ पहुँचा है .मेरे लिये सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात थी उसका संगीत से जुड़ा होना . उन दिनों विद्यालय में मुझे सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों का प्रभार
मिला हुआ था जिसमें वर्षभर आयोजित होने वाले साहित्य व संगीत विषयक प्रतियोगिताएं,
बालरंग, राष्ट्रीय पर्वों पर छात्रों की प्रस्तुतियाँ आदि की तैयारियाँ करवानी रहती
थी . लगभग 12 कक्षाओं में गाने वाले छात्रों को चुनना बड़ा श्रमसाध्य था .कई छात्रों
को सुर की समझ थी . गा भी लेते थे पर वे सामने नहीं आना चाहते थे .और कई उत्साह के साथ तैयार
रहते लेकिन वे सुर नहीं पकड़ पाते थे . गीत आदि तैयार करवाने में बहुत मेहनत और समय लगता था . राहुल के आने से चीजें काफी आसान होगई . वह बड़ा उत्साही और विनम्र था (है) .वह हर कार्यक्रम में भाग लेने उत्साहित रहता था लेकिन मुझे वह कहीँ ठहर गया सा लगता था . जहाँ आगे सीखने की राह या तो बन्द हो जाती है या बहुत छोटी और सीमित होजाती है . शायद पहले ही मंच पर मिली प्रशंसा और मुख्यमंत्री जी द्वारा मिले पुरस्कार का प्रभाव था जिसने उसे एक जगह रोक रखा है .उसकी जिज्ञासा और उत्साह को देखते हुए यह ठहराव ठीक नहीं था .
हालाँकि मैने संगीत
की की कोई शिक्षा नहीं ली है . विद्यालय में मेरी स्थिति ,“ निरस्तपादपे देशे एरण्डोऽपि द्रुमायते।“ जैसी थी अर्थात् रेगिस्तान में जहाँ वृक्ष
नहीं होते एरण्ड को ही वृक्ष मान लिया जाता है .लेकिन मुझे सुर की बारीकियों की समझ
तो थी . गाकर बता भी सकती थी . यह बात तो सभी में जन्मजात होती ही है .
स्वतंत्रता दिवस पर गाने के
लिये उसने एक काफी सूक्ष्म उतार चढ़ाव वाला देशभक्ति गीत चुना . मैंने पाया कि सुर तो सही हैं लेकिन उसमें उतार चढ़ाव और मोड़़ की बारीकियाँ नहीं हैं ,जो किसी भी गीत को खूबसूरत और कर्णप्रिय बनाती हैं .काफी कोशिश के बाद भी, जैसा मैं चाहती थी,
वह नहीं गा पा रहा था . मैंने कुछ खींज के साथ कहा –" राहुल सबसे पहले तुम इस गलतफहमी से बाहर आओ कि तुम अच्छा गाते हो .अभी
तुम्हें सुधार की बहुत ज़रूरत है .अगर
आगे जाना है तो खुद को लगातार अभ्यास के लिये तैयार करो .”
तमाम उम्मीदें पालकर आए बच्चे के लिये यह बात काफी कठोर थी , इसे मैं आज भी महसूस करती हूँ लेकिन आगे जाने के लिये वह ज़रूरी था . प्रशंसा के व्यामोह में हम अक्सर उलझकर रह जाते हैं . उस समय मेरी बात सुनकर वह कुछ मायूस दिखा लेकिन बिना किसी हताशा के उसने सुधार व अभ्यास जारी रखा .
उसकी इस बात से मैं बहुत प्रभावित हुई .यह बात साधारण नहीं थी बल्कि यह उसके उज्ज्वल भविष्य का स्पष्ट संकेत था . वह गीत की रिकार्डिंग सुनता रहा और मुझे गाकर सुनाता रहा .और अन्ततः उसने वह गीत बड़े ही सधे हुए स्वर में गा ही लिया और सबने ,खासतौर
पर मैंने बड़े सुकून से सुना . माधव संगीत विद्यालय में वह विधिवत् शिक्षा ले ही रहा था . धीरे धीरे उसकी आवाज में इतना आत्मविश्वास और निखार आ गया कि एक प्रतियोगिता में हमने परिणाम के अन्तिम निर्णय को चुनौती ही दे डाली .
यह सत्र 2014-15 की बात है . बालरंग की
जिलास्तर प्रतियोगिता थी . लेकिन सबसे अच्छा गाने के बाद भी उसे प्रथम स्थान नहीं मिला . संभाग स्तर पर केवल प्रथम को ही जाना था . वह निर्णय गले नहीं उतर रहा था . मैने प्राचार्य से कहा तो वे बोलीं "क्या तुम्हें यकीन है कि निर्णय़ पक्षपात पूर्ण था ?" मैंने कहा --" जी मैडम शत प्रतिशत ."मैडम ने जिलाशिक्षाधिकारी को पत्र लिखा . अच्छा यह हुआ कि उन्होंने हमारी शिकायत पर गौर किया . उन्होंने एक टीम बनाकर पुनः
प्रतियोगिता करवाई .उसमें राहुल विजयी रहा और मेरा विश्वास भी . उसने संभाग स्तर पर प्रथम आकर राज्यस्तरीय प्रतियोगिता
में भोपाल में भी प्रस्तुति दी थी .
राहुल के गुणों में मुझे विनम्रता लगन और परिश्रम सबसे अधिक मिले . इन्हीं गुणों ने उसे आज इस मुकाम तक
पहुँचाया है .
कहते हैं शिक्षक छात्रों को एक सही दिशा देते हैं .लेकिन मैं कहना चाहती हूँ कि अच्छे छात्रों के
कारण ही शिक्षक को अपनी पहचान ,सही सम्मान और सच्चा प्रतिफल मिलता
है ..
राहुल ने ग्वालियर माधव संगीत विद्यालय ग्वालियर से अपनी संगीत शिक्षा पूर्ण की. वहाँ उसके गायन में लगातार निखार आता रहा . मेरी कक्षा में ,और स्कूल में भी वह केवल दो वर्ष रहा इसलिये उसके निर्माण या उपलब्धियों में मेरा कोई खास सहयोग नहीं रहा लेकिन वह मानता है कि मेरी नसीहतों ने ही उसे सही राह दी है .मुझे यह एक उपलब्धि जैसा लगता है लेकिन वास्तव में राहुल अभावों से जूझकर , मुश्किलों को परास्त कर अपनी लगन ,परिश्रम और जिज्ञासा के कारण ही यहाँ तक पहुँचा है . इस बात
पर मुझे अपनी बाल कहानी ‘मुझे धूप चाहिये .’ याद आती है . जिसमें एक छोटा पौधा किस तरह धूप की चाह में सारे पौधों से ऊपर निकल जाता है . धूप आपको माँगने से
नहीं मिलती . कोई देना भी नहीं चाहता अपने हिस्से की धूप खुद हासिल करनी होती
है . राहुल ने अपने हिस्से की धूप खुद अर्जित की है. आज वह कितने ही
छात्रों को संगीत की शिक्षा दे रहा है . उसे शिखर सम्मान का समाचार पढ़कर हृदय विस्मय
,गर्व और पुलक से भर गया है .
हमेशा खुश रहो राहुल . ऐसी
उपलब्धियाँ तुम्हें मिलती रहें . बस याद रखना –
“इस पथ का उद्देश्य नहीं है
श्रान्त भवन में टिक रहना
किन्तु पहुँचना उस मंजिल तक
जिसके आगे राह नहीं .”
सस्नेह तुम्हारी दीदी